Book Title: Anusandhan 1993 00 SrNo 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 10
________________ सघलो 0 ढाल १६: 20 मानं वसाणे (१४) दूहा : सबलो वाहणथी वाहणनी फिरत अंबर अंबर फिरत फिरती कीरति पवनहींथे पवनहीं थई प्रतिमा – “मान व्यवहारीतणां हो एवा पाठ लखेल छ, पछी पोते ज मार्जिनमा मान जिहाजना लोकना हो एम उमेर्यु छे. चोपाइ चोपड़ तिहां सोहे सोहइ तिहां मावं १०-१ केसर छवि अनिं केसर छवि अगनिं १४-३ वसाणां (१५) ढाल १७: ४-४ केसर वचि केसर छवि हरख न माइ न हरख माइ ९-२ कर्या धरिया १०-२ मेहलि मेल्ही ११-१ वाज्यां वाजा वाजा वागां १३-३ हुआ वधामणां हुआं हो वधामणां आंगी अंगी १५-४ वळिक कलस. वली कनक कलस विधु मुनि संवत "मुनि "विधु संवत १९-३ पहेला "कवि जसविजयई ए रच्यों एम लखेल छ, पछी स्वयं मार्जिनमा घोघा बंदिरि ए रच्यों उमेयं छे.. नोंध :- मदित प्रतिमा दरेक ढालना मथाले अलग अलग “देशी नी पंक्ति छे. ज्यारे कर्तानी प्रतिमा ढाल १, ६ (मात्र ढाल लो नी एटलं ज), ७, ९, १३, १४ (मात्र समरिओ साद दिई ए देव ए देसी एटलं ज), १५, १६, १७ (मात्र गछपति राजिओ हो लाल एटलं ज), ए नव ढालोमा ज ते जोवा मळे छे. । । । । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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