Book Title: Anusandhan 1993 00 SrNo 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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भ्रातर् ग्राम - कुविन्द कन्दलयता वस्त्राण्यमूनि त्वया गोणी - विभ्रम- भाजनानि बहुशोऽप्यात्मा किमायास्यते : अप्येकं रुचिरं चिरादभिनवं वासस्तदासूत्र्यते
यन् नोज्झन्ति कुच - स्थलात् क्षणमपि क्षोणीभृतां वल्लभाः ॥
'हे भाई ! गामठी वणकर, आवां गुणपाट समां ढगलाबंध वस्त्रों वणीने तुं शा माटे नकामुं कष्ट वेठी रह्यो छे ? तुं जोईए तेटलो समय लईने पण मात्र एक ज एवं सुंदर अवनवुं वस्त्र वण ने, जे मानीती राजराणीओ पोताना कुचप्रदेश परथी क्षणमात्र पण अळगुं न करे !
भोजचरित्रमां आपेला एक प्रसंगमां कांईक एत्रा ज तात्पर्यवाळा अने रचनाचातुरीवाळा नीचेना पद्य प्रत्ये शीलचंद्रविजयजीए मारं ध्यान दोर्य
:
काव्यं करोमि न च चारुतरं करोमि यत्नात् करोमि यदि चारुतरं करोमि । भूपालमौलिमणिलुण्ठितपादपीठ !
हे साहसाङ्क ! कवयामि वयामि यामि ।।
'हुं काव्य करं छं, पण ते सुंदर बनतं नथी प्रयास करुं हुं तो (कदीक) सुंदर बनी आवे छे. जेना पादपीठ पासे (नमता सामन्त राजवी ओना ) मुकुटमणि आळोटे छे (आमथी तेम गति करे छे) एवा हे साहसांक, हुं काव्यरचना करं छं, वस्त्र वणुं हुं, जउं छु.
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