Book Title: Anusandhan 1993 00 SrNo 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 37
________________ १०७. १०८. १०९. ११०. १११क. १११. ११२क. ११२. ११३. ११४. ११६. ११७. दर विअसिअं २-२१५ दरिअ-सीहेण १-१४४ गा० १७५ ('ध्वन्यालोक मां उद्धृत) दासो वणे न मुच्चइ २-२०६ दिअ-भूमिसु दाण-जलोल्लिआई ३-१६ दिठिक्क-थणवठं १-८४ वालसंगो १-२४४ 'नंदिसत्त-११५ दुस्सहो विरहो १-११५ दुहावि सो सुर-वहू-सत्थो १-९७ दहिअए राम-हिअए २-१६४ दे आ पसिअ निअत्तसु २-१९६ दे पसिअ ताव संदरि २-१९६ देवं-नाग-सवण्ण १-२६ 'आवश्यक-सूत्र', श्रुतस्तव देविंदो इदमब्बवी ३-१६२ 'उत्तरज्झाया, नमिपवज्जा दोण्णि वि न पहप्पिरे बाहू ३-१४२ धणस्स लद्धो ३-१३४ धरणीहर पक्खुम्भंतयं २-१६४ 'सेतबन्ध २-२४ (गलितकना बीजा चरणनी पाछळनी १५ मात्रा) धारा-किलिन्न-वत्तं १-१४५ 'गरुडवहो, ४१० (प्रथम दलनी आरंभनी १२ मात्रा) धीरं हरइ विसाओ १-१५५ 'सेतबन्ध ४-२३ (पूर्वार्धनी आरंभनी १२ मात्रा) न उणाइ अच्छीई २-२१७ नच्चावियाई तेणम्ह अच्छीई १-३३ नत्थि वणे जं न देइ विहि-परिणामो २-२०६ न मरं ३-१३४ नमिमो हर-किरायं १.१८३ 'गरुडवहीं, ३५ (उत्तर दलनी अंतिम ११ मात्रा) नयरे न जामि ३-१३५ ११८. ११९. १२० ०१२१. १२२. १२२क. १२३. १२४. १२५. १२६. १२६क. [३२] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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