Book Title: Anusandhan 1993 00 SrNo 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 76
________________ धमसूरि – बारहनावउं तिहु यण-मणि-चूडामणिहि, बारहनावउँ धमसुरि' - नाहह । निसुणहु सुयणहु नाण-सह, पहिलउँ सावण-सिरि फुरिय ॥ १ कुवलय-दल-सामल • धणु गज्जइ, न मद्दल-मंडल-झुणि छज्जइ। विज्जु लडी झबकि हिं लवइ । २ मणहरु वित्थारे वि कलावु, अन्नु करे विणु कलि-केकारवु । फिरि फिरि नाचहिं मोरला ॥ ३ मेइणि हार हरिय छवि' णवर, त्री-जण भय उडिढय' नीलंबर । वियसिय ६ नव मालइ - कलिय ।। ४ हलि ! तुह कहियइँ गुणहँ निहाणु, धमसुरि अनु जससूरि समाणु । अन्न न अत्थि को वि जगि ।। ४ इहु प्रिय ! वरिसंतउ न गणिज्जउ, “ जायवि धमसुरि-गुरु वंदिज्जउ । किज्जउ माणु स-जम्मु सफलु ॥ ६ (२) वंदं तह धमसूरि-गुरु', भाद्रव-मासु पहू तु । मयगलि जिम्व गुलुगुलुवि घणि, जलु किउ महिहि प्रभूतु ॥ ७ ११ उहु सहि ! वियसिउ के उडउ, से रउ धवल-विलासु । जससु रि-न यण-परा भविउ, नं से वइ वणवासु ।। ८ पउणि पहरि जिण पंच-सय, पढिविणु१२ विम्हिउ लोउ । तसु धमसुरि-गुरु-तणिय वड, हुयउ न होसइ कोउ १३ ॥ ९ मूल पाठ : १. धमुसुरि २. सामण ३. कलासु ४. छमि पू. उड्डिय ६. वियलिय ७. अनु ८. गणिज्जइ ९. गुरू १०. पहूत्त ११. तह १२. पढिविणि १३. कोइ [७१] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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