Book Title: Anusandhan 1993 00 SrNo 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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२१६.
२१७.
२१८.
२१९.
२२०.
२२१.
२२२.
२२३.
२२४.
२२५.
०२११. अनंत - करणीयं दाणिं आणवेदु अय्यो २७७ ('अभिज्ञान शाकुन्तल, पहेलो अंक) अपुरवं नाडयं २७०
२२६.
२२७.
२२८.
२२९.
२३०.
२३१.
२३२.
गा० १२३ ( पूर्वदलनी आरंभनी १६ मात्रा) हिअए ठाइ १-१९९
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हुं गेह अप्पणो च्चिअ २-१९७. ('प्राकृतप्रकाश ९-२)
हुं निलज्ज समोसर २ - १९७
गा० ९४६ ( पूर्वदलनी आरंभनी १२ मात्रा) हुं साहस सम्भावं २-१९७
गा० ४५३ पाठ० : सहि साहस सब्भावेण / सब्भावं )
('प्राकृतप्रकाश', ९-२)
हेट्ठ-ट्ठिअ - सूर- निवारणाय वगेरे. ४-४४८
‘गउउवहों, १५.
होइ वणे न होइ २- २०६
शौरसेनी (८-४-२६०थी २८६ )
'अभिज्ञान शाकुन्तल, पहेलो अंक, प्रस्तावनामां पद्य चोथो पछीना नटीना संवादमां)
अम्महे एआए सुम्मिलाए सुपलिगढिदो भवं २८४ अय्यउत्त पय्याकुलीकदम्हि २६६
असंभाविद-सक्कारं २६०
'अभिज्ञान शाकुन्तल, पहेलो अंक, ३० मा पद्य पछी चोथो संवाद; पाठभेद अदिहि-सक्कारं 1)
:
एदु भवं २६५
कयवं करेमि काहं च २६५
किं एत्थभवं हिदएण चिंतेदि २६५
जुत्तं मिं २७९
अफलोदया २८३
णं अय्यमिस्सेहिं पुढमं य्येव आणत्तं २८३ 'अभिज्ञान शाकुन्तल, पहेला अंकमा
णं भवं मे अग्गदो चलदि २८३ 'अभिज्ञान - शाकुन्तल', बीजा अंकमा
[३८]
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