Book Title: Anusandhan 1993 00 SrNo 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 59
________________ बीजी वात, उपर जणावेली, ४१ गाथावाळी प्रतिओमांनी ५ + १ = ६ गाथाओने बाद करतां शेष ३५ गाथाओनो पाठ तथा क्रम टवावाळी अने टबा विनानी – एम दसे प्रतिओमां समान छे. आथी सहज ज प्रश्न थाय के आ प्रकरणनो खरो कर्ता कोण ? आ विषे ऊहापोह करतां केटलाक विचारणीय मुद्दा उद्भवे छे : १. यशोविजयजीनी रचना होय, ने बीजा कर्ताए ते पोताना नामे चडावी होय. २. अथवा एवं य बने के पद्मविजयजीनी रचना. होय अने तेने तेमना प्रत्ये अरुचि धरावता कोईए यशोविजयजीना नामे चडावी दीधी होय. ३. अथवा तो खद पद्मविजयजीए ज कोई कारणसर पोतानी रचनाने यशोविजयजीनं नाम आपी दीधं होय. आ त्रणमा वीजी अटकळ तथ्यथी वधु नजीक होय तेवू अनुमान आ संपादकना मनमां छे. जो के वीरविजयजीनो टबो छ, अने तेओ पण आ कृति यशोविजयजीनी होवानं जणावे छ; तो पण, संवत १८५० मां तो वीरविजयजीनो दीक्षाकाल हजी मांड वे वर्षनो ज होवान (दीक्षा सं. १८४८ मां थई)अर्थात् ते समये तेमनो अध्ययनकाल के आरंभकाल होवानं तेमना विशे प्राप्त ऐतिहासिक साधनोथी ज्ञात छे, एटले तेमणे पोते पोतानी सामेनी पूर्व-प्रतिनं ज मात्र अनुसरण कर्यु होय तेम विचारवं वधु योग्य जणाय छे. पू. यशोविजयजीनी प्राप्त अने ज्ञात ग्रन्थ रचनाओनी अद्यतन सूचिओमां आ प्रकरणनो क्यांय निर्देश नथी. आ प्रकरणनी प्रथम गाथामां निर्देश्या प्रमाणेनी आज विषयनी पूर्वरचना पण मळी - मलती नथी. वळी, आजे जे प्रतिओ आ प्रकरणनी मळी छे ते तमाम १९२०मा शतकनी ज छ; अने १७-१८मानी एक पण प्रति हजी प्राप्त थई नथी. वळी, आ रचनामां उपाध्याय यशोविजयजीनी उद्भर विद्वत्तानो एकाद पण उन्मेष जोवा नथी मळतो. 'एमनी आ आरंभिक रचना होई शके - एवं मनना संतोष खातर विचारीए, तो पण, तेमां वह वजूद नहि आवे. केम के प्रकरणना टबाना मंगलाचरण परथी मूळकार अने टवाकार एक ज होवान सिद्ध थाय छे, अने ए मंगलाचरणना बे श्लोकोन संविधान अने शब्दो जोतां ज 'आ यशोविजयजीनं न ज होय एम कोई पण अभ्यासी तत्क्षण कह्या विना नहि ज रहे. बधी वातोनो सार एटलो ज के यशोविजयजीना नामे मळी आवती प्रस्तत कृति,वस्ततः पद्मविजयजीकृत होवी जोईए, के जे पोतानी कृति पद्मविजयजीए श्रीपूज्य उदयसागरसूरि पासे संशोधित पण करावी छे. आम छता आ कृतिनी प्रतिओ 'यशोविजयजीनी रचना तरीके मळे छे, ते पद्मविजयजी प्रत्ये कोईनी अभक्ति के पछी यशोविजयजी प्रत्येनी कोईनी अतिभक्तिनं ज परिणाम जणाय छे. [५४] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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