Book Title: Anusandhan 1993 00 SrNo 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 44
________________ २४०. २४१. २४२. २४३. २४४. २४५. २४६. तदो पू िद-पदिशेण मारुदिणा मंतिदो २६० तधा करेध जधा तस्स राइणो अणुकंपणिआ भोमि २६० ता अलं एदिणा माणेण २७८ ता जाव पविसामि २७८ नमोत्थुणं २८३ (आर्षे) पंजलिदो भयवं हुदासणो २६५ भयवं कुसमाउह २६४ (रत्नावली, बीजो अंक, सातमो सागरिकानो संवाद) भयवं तित्थं पवत्तेह २६४ मघवं पागसासणे २६५ मम य्येव बंभणस्स २८० समणे भयवं महावीरे २६५ 'कल्पसूत्र १ सयल-लोअ-अंतेआरि भयवं हुदवह २६४ संपाइअवं सीसो २६५ सो य्येव एसो २८० हला सउंतले २६० 'अभिज्ञान-शाकन्तल, पहेला अंकमांथी. हंजे चरिके २८१ हीमाणहे जीवंत-वच्छा मे जणणी २८२ 'उदात्तराघवं माथी हीमाणहे पलिस्संता हगे एदेण निय-विधिणो २८२ दुव्वसिदेण २८२ 'विक्रान्तभीम माथी हीही भो संपना मनोरथा पिय-वयस्सस्स २८५ मागधी (८-४-२८७ थी ३०२) अमच्च-ल-कशं पिक्खि, इदो य्येव आगश्चदि । ___ 'मदाराक्षस', चोथो अंक, चोथा पद्य पछीना बीजा संवादमा अम्महे एआए शुम्मिलाए शुपलिगढिदे भवं ३०२ (= २८४) अय्य एशे खु कुमाले मलयकेदू ३०२ २४७. . २४० २४९. २५०. २५१. २५२. २५३. २५४. २५५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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