Book Title: Anusandhan 1993 00 SrNo 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 46
________________ ७८. ३७९. २८०. २८१. २८२. २८३. २८४. - २८५. २८६. २८७. २८८. २८९. २९०. २९१. २९२. २९३. २९४. २९५. २९६. २९७. २९८. भयवं कदंते ये अप्पणी प=कं उज्झिय पलस्स प=कं पमाणीकलेशी ३०२ 'मुद्राराक्षस' चोथो अंक, २१मा पद्य पछीनो छडो संवाद भीमशेणस्स पश्चादो हिंडीयदि २९९ 'वेणीसंहार, त्रीजो अंक, त्रीजा पद्य पछीनो १३मो संवाद भो कंचुइआ ३०२ मालेध वा घलेध वा अयं दाव शे आगमे ३०२ त्तं मं ३०२ लहश - वश - नमिल- शुल- शिल- विअलिद-मंदाल - लायिदंहि-युगे । वील- यिणे पक्खालदु मम शयलमवय्य-यंबालं ॥ २८८ शमणे भयवं महावीले ३०२ शयणाहँ सुहं ३०० शलिशं णिदं ३०२ शस्प-कवले २८९ शुध दाणिं हगे शक्कावयाल-1 ल-तिस्त- णिवाशी- धीवले ३०२, ३०१ 'अभिज्ञान - शाकुन्तल', छट्ठो अंक, प्रवेशक, बीजो संवाद, चोथो संवाद शस्क - दालु २८९ शुटु कदं २९० से तारिसे दुक्खसहे जिइंदिए २८७ 'दशवैकालिक सूत्र, अध्ययन ८, गा० ६३, प्रथम चरण हगे न एलिशाह कम्माह काली २९९ 'हगे शक्कावयाल' वगेरे (= ३०२) हगे चदुलिके ३०२ हिडिंबाए धडुक्कय-शोके ण उवशमदि । २९९ 'वेणीसंहार, त्रीजो अंक, त्रीजा पद्य पछीनो पांचमो संवाद हीमाणहे जीवंत / वश्चा मे जणणी ३०२ 'उदात्तराघव' : राक्षसनी उक्ति हीमाणहे पलिस्संता हगे एदेण- णिय-विधिणो दुव्ववशिदेण ३०२ 'विक्रान्तभीम' : राक्षसनी उक्ति हीही संपत्रा में मणोलधा पिय-वयस्सस्स ३०२ [४१] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90