Book Title: Anusandhan 1993 00 SrNo 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 54
________________ चळी सामान्य प्राकृतना निरूपणमां आरंभे ज हेमचंद्राचार्ये स्पष्ट कहयुं छे के आर्ष प्राकृतमा आगळ उपर जे नियम अपाशे ते बधा विकल्पे प्रवर्तता होवान समजवं. आनुं तात्पर्य एवं समजी शकाय छे के हेमचंद्राचार्यनी पासे जे आगमग्रंथोनी हस्तप्रतो हती तेनी भाषामा सामान्य प्राकृतनां, शौरसेनीनां अने मागधीनां जे विशिष्ट लक्षणो व्याकरणकारोए मान्यां हता, ते बधां लक्षणो वधतेओछे अंशे धरावता प्रयोगो हता. एटले आर्ष प्राकृत के अर्धमागधीनू आगवं, स्वतंत्र लक्षण बांधी शकाय तेवू भाषास्वरूप हेमचंदाचार्यने जैन आगमसाहित्यमा जोवा मळतुं न हाँ.* *कया हेतुथी प्राकृत भाषाओनां व्याकरण रचातां हता, अने ते अनुसार हेमचंद्राचार्य- लक्ष्य शुं हतुं ते समज्या विना नित्ती दोल्चीए पोताना पुस्तक The Prakrit Grammarians (अंग्रेजी अनुवाद)मां हेमचंद्राचार्यना प्राकृत व्याकरणनी जे टीका करी छे, ते अज्ञानमूलक अने अन्यायी ज कही शकाय. पण तेनी विगते विचारणा करवानुं अहीं अप्रस्तुत छे. पिशेले पण हेमचंद्राचार्ये देशीनाममाला मां जे उदाहरणपद्यो आपेला छे तेनी वगर समज्ये टीका करी हती. ए विद्वानोए प्राकृत भाषाना अध्ययनक्षेत्रे जे महत्त्वनुं योगदान करेलुं छे ते आदरणीय छ, परंतु आ बाबतने लगतां तेमना विचारो अने मंतव्य भूल भरेला छे. [४९] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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