Book Title: Anusandhan 1993 00 SrNo 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 32
________________ मुख्य प्राकृत (८-१-१ थी ८-४-२५९) • " * अइ उम्मत्तिए १-१६९ अइ दिअर किं न पेच्छसि २-२०५ ___ गा. ५७१ (प्रथम दल, आरंभनी १२ मात्रा) अइ सप्पइ पंसलि णीसहेहिं अंगेहिं पनरुत्तं २-१७९ अज्ज म्मि हासिआ मामि तेण ३-१०५ गा. २६४ (प्रथम दल, आरंभनी १६ मात्रा) अज्ज वि सो सवइ ते अच्छी १-३३ अणचिंतिअममुणंती २-१९० ____ 'तारागण, ७१ (प्रथम दल, आरंभनी १२ मात्रा) अट्ठारसण्हं समण-साहस्सीणं ३-१२३ अणुवद्धं तं चिअ कामिणीणं २-१८४ अत्थालोअण-तरला वगेरे १-७ 'गरुडवहाँ ८६. अप्पणिआ पाउसे उवगयम्मि ३-५७ अप्पणिआ य विअड्डि खाणिआ ३-५७ (वैतालीयन सम चरण) अम्मो कह पारिज्जइ २-२०८ अम्मो भणामि भणिए ३-४१ सरखावो : अत्ता भणामि भणिए : गा० ६७६मा ‘भणिए भणामि अत्ता (बीजा दलनी आरंभनी १२ मात्रा)नं पाठांतर. अरे मए समं मा करेस उवहासं २-२०१ अलाहि किं वाइएण लेहेण २-१८९ अव्वो किमिणं किमिणं २-२०४ अव्वो तह तेण कया वगेरे २-२०४ अव्वो दलंति हिअयं २-२०४ अव्वो दुक्कर-कारय २.२०४ गा० २७३ अव्वो न जामि छेत्तं २.२०४ गा. ८२१ (पहेला दलनी आरंभनी १२ मात्रा) अव्वो नासेंति दिहिं वगेरे २-२०४ अव्वो सपहायमिणं वगेरे २-२०४ अव्वो हरंति हिअयं वगेरे २-२०४ गा. ५४१. असाहेज्ज देवासुरा १-७९ * :: M [२७] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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