Book Title: Anusandhan 1993 00 SrNo 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
इमिआ वाणिअ-धूआ ३-७३ इहरा निसामन्नेहि २-२१२ उअ निच्चल-निप्फंदा २-२११
गा० -४ (पूर्व दलनी आरंभनी १२ मात्रा) उन्नम न अम्मि कविआ ३--१०५ उप्पज्जते कइ-हिअअ-सायरे कव्व-रयणाई ३-१ ४२.
‘वज्जालग्ग, १९ (उत्तर दल) उम्मीलंति पंकयाई ३-२७ । उवकंभस्स सीअलत्तणं ३-१० उवमास अपज्जतेम वगेरे. १-७
_ 'गरुडवहों-१८८ उसभमजिअं च वंदे १-२४
_ 'आवश्यक-सूत्र, चतुर्विशतिस्तव-२ ऊ कह मुणिया अहयं २-१९९ ऊ किं मए भणिअं २-१९९ ऊ केण न विण्णायं २-१९९ ऊ निलज्ज २-१९९ एअं खु हसइ २-१९८
गा० ६ (पाठांतर-उत्तर दलनी आरंभनी ६ मात्रा) एवं किल तेण सिविणए भणिआ २-१८६ एवं दोण्णि पहू जिअ-लोए ३-३८ एस सहाओ च्चिअ ससहरस्स ३-८५ ऐ बोहेमि १-१६९ ओ अविणय-तत्तिल्ले २-२०३ ओ न मए छाया इत्तिआए २-२०३ ओमालयं वहइ १-३८. |
गा० २-९८ (उत्तर दलनी अंतिम १० मात्रा : पाठ०
ओमालिय) ओ विरएमि णहयले २-२०३ कल्लं किर खर-हिअओ २-१८६ गा० ८६. (पूर्व दलनी आरंभनी १२ मात्रा) किणो धवसि २-११६. गा० ३६९; 'प्राकृतप्रकाश, ९-९
[२९]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90