Book Title: Anusandhan 1993 00 SrNo 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
(४). 'छंदोनुशासन' गत प्राकृत छंदप्रकार द्विभंगीनां उदाहरणोनी पाठचर्चा
१. छंदोनुशासन मां हेमचंद्राचार्ये सामान्य रीते स्वरचित उदाहरणो आप्यां छे. ज्यां कोई पूर्ववर्ती ग्रंथना उदाहरणनो उपयोग कर्यो छे, त्यां पण उदाहरणमां छंदनं नाम गूंथवानं होवाथी तेमणे जरूरी फेरफार कर्या छे. पण केटलीक वार कोई पूर्ववर्ती स्रोतमाथी उदाहरण उद्धृत करेल छे. जेम के चोथा अध्यायना ८७मा सूत्र नीचे विविध छंदोना संयोजनथी थती द्विभंगीओ तरीके (१) गाथा + भद्रिका, (२) वस्तुवदनक + कर्पूर, (३) वस्तुवदनक कुंकुम, (४) रासावलय + कर्पूर, (५) रासावलयक + कुंकुम, (६) वस्तुवदनक अने रासावलयनुं मिश्रण + कर्पूर, (७) वस्तुवदनक अने रासावलयनं मिश्रण + कुंकुम, (८) रासावलय अने वस्तुवदनकनं मिश्रण + कर्पूर, (९) रासावलय अने वस्तुवदनकनुं मिश्रण कुंकुम, (१०) वदनक + कर्पूर, (११) वदनक + कुंकुम एटला छंदप्रकारोनां उदाहरण संभवतः कोई पूर्ववर्ती छंदोग्रंथमांथी लीघेलां छे. आमांना आठ उदाहरण कविदर्पण मां पण मळे छे. ‘कविदर्पणकारे `छंदोनुशासन मांथी ते लीधां होय एवो प्रबळ संभव छे, केम के केटलेक स्थळे ते 'सिद्धहेम ना प्राकृत विभागमांथी प्रयोगना समर्थन माटे उद्धरण आप्यां छे. जो के थोडाक पाठ भिन्न छे. आमांथी रासावलय अने कर्पूरनी द्विभंगीनं उदाहरण नीचे प्रमाणे छे.
+
परहुअ - 1-पंचम-सवण-सभय मन्नउं स किर तिण भइ न किंपि मुद्ध कलहंस - गिर |
चंदु न दिक्खण सक्कइ जं सा ससि वयणि दप्पणि मुह न पलोअर तिंभणि मय - नयणि ||
वइरिउ मणि मन्नवि कुसुम-सरु, खणि खणि सा बहु उत्त । अच्छरिउ रूव-निहि कुसुम - सरु, तुह दंसणु जं अहिलसइ ||
('कविदर्पण ं मां कलयंठि-गिर ं अने 'मन्निवि पाठ छे ते वधु सारा छे. छेल्ली पंक्तिमा कुसुम - सर एवो पाठ जोईए, ते संबोधन होवाथी ).
'हुं मानुं छं के ते मुग्धा कोकिलनो पंचम सूर सांभळवाथी डरे छे, अने ते कारणे ज ते कोकिलकंठी पोते कशुं ज बोलती नथी. ए चंद्रवदना चंद्र जोई शकती नथी, ते कारणे ए दर्पणमा पोतानं मुख जोती नथी. मनमा रहेला कंदर्पने शत्रु मानीने ते क्षणे क्षणे घणो त्रास पामी रही छे, ने तेम छतां ए एक अचरज छे के हे रूपनिधि कंदर्प, ए तारं दर्शन करवानी अबळखा सेवे छे. '
Jain Education International
+
[२१]
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90