Book Title: Anusandhan 1993 00 SrNo 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 18
________________ ४. पुष्टिमार्गीय वैष्णव कवि हरिदासना मुख-परंपरामां पण मळता एक धोळमां 'कीडाभूमि' (रासक्रीडा माटेनी रंगभूमि) एवा अर्थमां ‘अखाडो'नो प्रयोग मळे छ : 'एक रच्यो अखाडो रे, सज्ज थया पोते ' (संदर्भ कृष्ण-गोपीओनी रासलीलानो : जुओ ‘हरि वेण वाय छ रे हो वनमा', पृ. ७४, कडी २). ५. सं. 'छुप्त-', प्रा. छुत्त- = 'स्पृष्ट', पछीथी, 'दृषित स्पर्शवाळं'. प्राकृतमा पण छुत्ति 'अशौच' एवा अर्थमां वपरायेलो छ, जेना परथी ज. गुज. 'छोति', हिं. 'छूत' थया छे. 'अछूत' शब्द 'अस्पृष्ट' (हिं. 'अछूता'), तेम ज 'अस्पृश्य' (हिं. अछूत) बंने अर्थमां रूढ छे. 'छूताछूत' मां धात्वर्थ जळवायो छे. प्रस्तुत नोंध क्रमांक ७मां पण 'अछूतउ' 'अस्पृश्य' ए अर्थमा होवानी शक्यता छे. ६. ए ज प्रमाणे 'वपरि'नो प्रयोग पण प्राचीन गुजरातीमाथी टांकी शकाय. 'अनुसंधान'ना प्रस्तुत अंकमां रमणीक शाह संपादित 'धमसूरि-बारहनामउंमा ३५ मी कडी- पहेलुं चरण आ प्रमाणे छे. 'बापुरि सहइ कुसुंभडीय.' आथी में सूचवेली व्युत्पत्ति पण समर्थित थाय छे. - ह. भायाणी [१३] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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