Book Title: Anusandhan 1993 00 SrNo 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 23
________________ दीर्घ ऊ वाळो चूणि छे, अने गुजराती कोशोमां पण चूणवू, चूण एम दीर्घ स्वरवाळां रूप नोंधायां छे. आनो खुलासो मेळववानो रहे छे. चुणि उपरथी चण थाय, चूणि उपरथी चूण. हिंदी वगेरेमा चणवाना अर्थमां चुगना के चूंगना छे. पंजावीमा चोग्गा एटले चण. टनर ए धातओ अने तेमाथी साधित शब्दो माटे मूळ तरीके चुग्यति के चुंगति होवानं मान्यं छे. ('इलें ४८५२, ४८५३, ४९१९, ४९२०). पण सादृश्यनो आधार लईने ए धातने अने साधित शब्दोने चुणइ साथे जोडी शकाय तेम छे. चिणइ उपरथी कर्मणि चिव्वइ, चिम्मइ अने चिज्जइ थाय छे. ते अनुसार चुणइ उपरथी कर्मणि चुज्जइ. अने पछी जेम प्राकृत भज्जइ, भू. कृ. भग्ग, रज्जइ - रग्ग, वज्जइ - वग्ग वगेरे तेम चुज्जइ - चुग्ग. अने ए भूतकृदंत परथी धातु चुगना अने नाम चोग्गा वगेरे सधाया. २. छंदचर्चा, पाठचर्चा वगेरे (१). सिहे. ८-४-३३० ना उदाहरणनो पाठ अने छंद 'सिद्धहेम ना अपभ्रंश विभागना ३३० मा सूत्र प्रमाणे नामिक विभक्तिना प्रत्यय पूर्वे नामना अंगनो अंत्य स्वर हूस्व होय तो दीर्घ थाय छे, अने दीर्घ होय तो हुस्व थाय छे. तेनं उदाहरणपद्य नीचे प्रमाणे छ : ढोल्ला सामला धण चंपावण्णी । णाई सुवण्ण-रेह कसवट्टइ दिण्णी । 'नायक शामळो छ, नायिका चंपावणी छ. जाणे के कसोटीना पथ्थर पर सोनानी रेखा पडी होय (तेवां ते शोभे छे.). दोग्धकवृत्ति अनुसार अहीं नायक - नायिकाना विपरीत रतनी परिस्थितिनं वर्णन छे. __ अहीं समस्या ए छे के उदाहरणपद्यनो छंद जे रूपे पाठ सचवायो छे ते रूपमा अनियमित छे. एकी चरणोमां का नव मात्रा जोईए, कां तो दस. पण उपर आपेला पाठमां पहेला चरणमा नव मात्रा छे, पण त्रीजा चरणमा दस. आ बाबत तरफ अपभ्रंश व्याकरणना संपादको - संशोधकोनं ध्यान नथी गयं. 'परातन प्रबंध संग्रह (संपा. जिनविजय मनि, सिंजैन., २, १९३६)नी ई. स. १४ मी शताब्दीनी G हस्तप्रतमां आपेल भोजचरित्रमा एवो प्रसंग छे (पृ. २०-२१ परिच्छेद ३६) के मालवपति मुंजे ज्योतिषीने पूछतां तेणे जणाव्यु के तमने पुत्र थशे नहीं, पण श्रावण सुद पांचमना पहेला प्रहरे जे तमारी समस्या पूरशे ते तमारा पछी राजा थशे. ते दिवसे मंजे कोईक प्रासादमा रहेला श्याम पति अने गोरी पत्नीने जोयां अने तेने पद्यार्ध स्फुर्य : ढुल्लउ सामलउ धण चंपावन्नी । एनी समस्यापूर्ति बीजा कोईथी न थई शकी, पण भोजे ते करी : छज्जइ [१८] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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