Book Title: Anusandhan 1993 00 SrNo 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 20
________________ (२) प्रा. पाणद्धि 'शेरी', 'गली'. हेमचन्द्राचार्यकृत 'देशीनाममाला' मां (६-३९) पाणद्धि शब्द रथ्याना अर्थमा आपेलो छे. प्राकृतकोशमां तेनो साहित्यमा थयेलो कोई प्रयोग नोंधायो नथी. पण भोजकृत सरस्वतीकंठाभरण ं (पृ. ६३५) अने 'शृंगारप्रकाश' (पृ. ७९०, ११९७) मां टांकेली नीचेनी उदाहरणगाथामां तेनो प्रयोग मळे छं. (जुओ, वी. एम. कुलकर्णी, ग्रंथ - १, पृ. १६० (क्रमांक ५९२), २, पृ. ६५, ८०५.). ग्रंथ - हो कण्णुलीणा भणामि रे किंपि सुहअ मा तूर । संकडम्मि पुण्णेहिं लद्धो सि ॥ णिज्जण - पाणद्धी "अरे सुभग, जवानी उतावळ न कर. मारे तने कांईक कानमां कहेवुं छे. आगला भवनां पुण्ये तुं सांकडी निर्जन गलीमां भेगो थयो छे. * (३) दे. मोरउल्ला 'व्यर्थ' सिहे. ८-२-२१४ मां मोरउल्ला क्रियाविशेषण मुधा निरर्थक, नकामुं एवा अर्थमा आप्यो छे. पासम. मां मोरकुल्ला एवं रूप पण नोंध्युं छे, अने तेनो प्रयोग 'चउपन्न - महापुरिसचरिय', 'कुमारपालचरित ं (मा तम्म मोरउल्ला 'तुं निरर्थक दुःखी न था, ४, २०) अने सुमतिजिन-चरित्र' मां थयो होवानं जणाव्युं छे. रत्नप्रभसूरिकृत उपदेशमाला - दोघट्टीवृत्ति (ई.स. ११८२ ) मां पण एनो प्रयोग मळे छे : मरेसु मा मोरउल्लाए निरर्थक न मर ं (पृ. ८, पद्य ८७ ). * कंठपरंपराना एक वैष्णव धोळनी पंक्तिओ सरखावो : सांकडी शेरीमां श्री वल्लभ मळ्या, बोल्या कांई वेण - कवेण, श्री वल्लभ विना घडी नहीं चाले. (४) उट्ठब्भ्- के उट्ठब्भ्- ? 'सिद्धहेम ं ८, ४, ३६५ नीचे ( अपभ्रंश - विभागमां), सं. इदम् नुं स्थान अपभ्रंशमां आय ले छे ते दर्शाववा आपेलां त्रण उदाहरणोमां त्रीजुं नीचे प्रमाणे छे : आयहो दड्ढ-कलेवरहो, जं वाहिउ तं सार । जइ उट्ठब्भइ तो कुहइ, अह डज्झइ तो छारु ॥ शरीरनुं असारपणुं दर्शाववा आ दोहामां कह्यं छे के मृत्यु थतां शरीर कां तो सडी जाय छे, नहीं तो (जो तेने बाळी मूकवामां आवे तो) राख थई जाय छे. आमां उट्ठब्भइनो ( १ ) [१५] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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