Book Title: Anusandhan 1993 00 SrNo 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 14
________________ केटलाक मध्यकालीन गुजराती शब्दप्रयोगो जयंत कोठारी जयत १. अउले खाले वहै जिनराजसूरिकृत शालिभद धन्ना चोपाई (र.इ. १६२२)मां शालिभदनी रिद्धिना वर्णनमां नीचेनी पंक्ति आवे छ : जीहो अउले खाले वहै, जीहो कस्तूरी घनसार. (४,११) संपादक अगरचंद नाहटा (जिनराजसूरिकृतिकुसुमांजलि, सं. २०१७) अउले ना तरल, अवलेह एवा अर्थो आपे छे, जे अहीं कोई रीते बेसता नथी. अउले खाले वहै ए रूढिप्रयोग होवानं समजाय छे. अवळी खाळे वहेवं एटले ऊभरावं, छलकावं. शालिभदने घरे कस्तूरी अने कपूर अंगलेपमा एटलां वपराय छे ने धोवाईन खाळमां एटलां वहे छे के खाळ एनाथी ऊभराय छे. ए नोंधपात्र छे के आवो रूढिप्रयोग राजस्थानी शब्दकोश के रूढिप्रयोगकोशमां नोंधायेलो नथी. २. अउल्हाइ जिनराजसूरिना गोडी पार्श्वनाथ स्तवन मां नीचेनी पंक्तिओ आवे छ : देव घणाइ देवले, गउडेचा राय, दीटा ते न सुहाइ रे, गउडेचा राय, इक दीठा मन हुलसइ, गउडेचा राय, इक दीठा अउल्हाइ, रे गउडेचा राय, ओलावू शब्द बझावं, ठरवं एवा अर्थमा जाणीतो छे. पण ए अर्थ अहीं नथी ए स्पष्ट छे. हुलसई (उल्लास पामे) ना विरोधी अर्थनो ज ए शब्द होई शके. नाहटा संकचित थवं एवो अर्थ ले छे. पण उल्लास पामें ना बराबर विरोधी अर्थमां आ शब्द नांधायेलो मळे छे. 'देशीशब्दसंग्रह ओहुल्ल एटले खिन्न अने ओहुल्लिय एटले ‘म्लान अर्थ आपे छे. तो अहीं पण एक देवने जोतां मन उल्लास पामे, एक देवने जोतां मन खिन्न थाय एम अर्थ बराबर बेसे. ३. अउगनाइ साधुसुन्दरगणि (ई. १७ मी सदी पूर्वार्ध) कृत उक्तिरत्नाकर' (संपा. मुनि जिन विजय)मा अउगनाइ शब्द नोधायेलो छे ते ध्यान खेंचे छे. एनो संस्कृत पर्याय एमां 'अपकर्णयति अपायेलो छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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