Book Title: Anusandhan 1993 00 SrNo 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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विपदि विषादो रणे च धीरत्वम् । तं भुवनत्रयतिलकं
जनयति जनना सुतं विरलम् ।। आ सभाषितना तात्पर्यने केटली खूबीथी वणी लेवामां आव्यं छे ! “आवश्यक - निर्यक्ति” मां एक गाथा आवे छे, तेमा “तीर्थ"नी व्याख्या वांधवामां आवी छ :
“दाहोवसमं तण्हाइछे अणं मलपवाहणं चेव । तिहि अत्थेहि निउत्तं तम्हा तं दव्वओ तित्थं ॥
हवे आ ज वात जरा जदी रीते, "महाभारत मां पण करवामां आवी छे. -(दर्भाग्ये, महाभारतना सन्दर्भस्थाननं अत्यारे विस्मरण थयं छे. पण ते पद्य आ प्रमाणे छे :) -
पङ्क-दाह-पिपासाना - मपहारं करोति यत् । तद्धर्मसाधनं तथ्यं तीर्थमित्युच्यते बुधैः ।।
अने आ वातने उपाध्यायजीए आ रीते ढाळी छे :
"टालइ दाह, तृषा हरइ, मल गालइ जे सोइ; त्रिहुं अरथे तीरथ कहिउं, (ते तुझमां नहिं कोई). (ढाल ७ ना दूहा -६) अने हवे थोडीक कहेवतो - लोकोक्तिओ पण जोईए : "खंड भलो चंदन तणो रे लो, स्यो लाकडमो भार रे सज्जन संग घडी भली रे लो, स्यो मूरख अवतार रे" (ढाल ६/८)
आ वांचता ज - चंदन की चटकी भली, झाझां काष्ठनां भारा;
चतुरकी घडी भली, मूरखनां जन्मारा -
ए लोकोक्ति सहेजे ज याद आवी जाय. अने एमनी आ उक्तिओ - " मा आगलि मूंसाल, ए सवि वर्णन साच (ढाल ३, दूहो १), गरजे कहिई खर पिता (ढाल ७, दूहो ८) छोरू कुछोरू होइ तो पणि, तात अवगुण नवि गणइ (ढाल ७/२) "इम चित्त म धरे शकट हेठिं, श्वान जिम मनमा धरई (७/९)
वांचतां ते ते लोकभाषा-प्रसिद्ध रूढ प्रयोगो अनायासे ध्यानमां आवे छे. यशोविजयजीनी विलक्षणता ए छे के ज्यां अन्य कविओने पोतानी वात, विधान के
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