Book Title: Anusandhan 1993 00 SrNo 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 13
________________ प्रसंगने दृढ/पष्ट वनाववा माटे उक्तं च के यदुक्तं - कहीने नीतिशास्त्रादिना साक्षात श्लोको टांकवा -- उध्दरवा पडे छ, त्यां यशोविजयजी, तेवं न क तां, उपर जोयं तेम, जे ते नीतिवचन वगेरेने पोतानी शैलीथी भाषामां ज ढाळी रई पोताना प्रवाहने अस्खलित चाल राखे छे. श्रद्धा, प्रसाद अने अध्यात्मप्रसाद __नगीन जी. शाह बौद्ध धर्मदर्शन अने योगदर्शन बंने चित्तशास्त्र छे. तेमनी महत्त्वनी विभावनाओ अने पारिभाषिक शब्दोन साम्य नोंधपात्र छे. अभिधर्मकोशभाष्यमां श्रद्धानी व्याख्या आ प्रमाणे छे - श्रद्धा चेतसः प्रसादः । (२.२५). पांतजल सूत्र (१.२०) उपरना पोताना भाष्यमां व्यास श्रद्धानं लक्षण नीचे मजब आपे छे - श्रद्धा चेतस : संप्रसादः। आ बंने व्याख्याओ शब्दशः एक ज छे. प्रसाद शब्दनो अर्थ अनास्रवत्व छे, निर्मलता छे, शुद्धि छे. प्रसादोऽनाम्रवत्वम्। स्फटार्था टीका ८.७५. यद्धि निर्मलं तत् प्रसन्नमित्युच्यते । अभिधर्मदीपवृत्ति, पृ. ३६७. तत्त्वपक्षपात चित्तनो स्वभाव छे. तत्त्वपक्षपातो हि धियां (चित्तस्य) स्वभावः । योगवार्तिक १.८. राग-द्वेष-मोह ए चित्तनी अशद्धिओ छे. ते चित्तना आ स्वभावने आवरे छे. ए अशुद्धिओनं दूरीकरण चित्तने शुद्ध करे छे. चित्तनी आवी शुद्धि चित्तनो संप्रसाद छे, ते ज श्रद्धा छे. बौद्ध धर्मदर्शन अने योगदर्शन बंने ए निर्वितर्क - निर्विचार ध्यान या समापत्तिनी भूमिकाए चित्तमा जे वैशारद्या या शुद्धि प्रगट थाय छे तेने माटे 'अध्यात्मप्रसाद पदनो प्रयोग कर्यो छे. बंने स्वीकारे छे के आ ध्यानमा वितर्क अने विचाररूप क्षोभ चित्तमांथी दूर थतां चित्तमां विशेष शुद्धि, वैशा, वैशारा प्रगटे छे. ते ज अध्यात्मप्रसाद छे. वितर्कविचारक्षोभविरहात् प्रशान्तवाहिता सन्ततेरध्यात्मप्रसादः । अभिधर्मकोशभाष्य ८.७. "निर्विचारवैशारोऽध्यात्मप्रसादः । योगसूत्र १.४७ प्रशान्तवाहिता पद पण बंने चित्तशास्त्रमा पारिभाषिक अर्थमा प्रयक्त छे अने बंने स्थाने अक ज अर्थ छे. [८] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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