Book Title: Angakaradi Laghu Bruhad Vishayanukramau
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 21
________________ आचाराङ्गे हक्कमः। ॥१९॥ १३४ नि० प्रत्येकतरुजीवराशिपरिमाणम् | १५० ,, वनस्पतेर्विभागतो द्रव्यभावशस्त्रम् त्वं विधानादिना ६७ ६७ १३५ नि० शेषा आशाग्राह्याः १५१ ,, वनस्पतेरुक्तशेषद्वाराणां पृधि- | | १५३ ,, त्रस-लब्धिगतिभ्यां द्विधा' १३६-१३७ नि० साधारणवनस्पति व्याः सादृश्यम् | १५४ ,, त्रसजीवभेदाः लक्षणम् ५९ ४० वनस्पत्यारम्भाकरणेऽनगारत्वम् १३८ नि० मूलप्रथमपत्रयोरेकजीवत्वम् ४१ गुणावर्त्तयोरक्यम् ६२ १५५ ,, त्रसजीवोत्तरभेदाः (योनिकुलानि) १३९-१४० नि० अनन्तकायलक्षणम् ४२ वनस्पत्यभिनिवृत्तशब्दादीनां सर्व १५६ १५७ ,, त्रसजीवानां दर्शना१४१ नि० साधारणवनस्पतेर्भेदाः दिग्भाक्त्वम् ६३ दीनि (१९) लक्षणानि ६८ १४२ नि० एकाद्यसङ्ख्यातानां प्रत्येके । ४३ शब्दादिगुणागुप्तत्वेऽनाज्ञाकारित्वम्६४ १५८ ,, त्रसजीवानां परिमाणम् दृश्यत्वम् ४४ शब्दादिगुणास्वादेऽसंयमानुष्ठायित्वम् १५९ ,, अविरहितप्रवेशनिर्गमपरि१४३ नि० साधारणेऽनन्तानां दृश्यत्वम् ६० ४५ शब्दादिगुणप्रमत्तत्वे गृहस्थत्वम् माणम् ६९ । १४४ नि० सूक्ष्मानन्तजीवपरिमाणम् । ४६ वनस्पतिशस्त्रसमारम्भेऽन्यतीर्थिकदशा १६० ,, उपभोगशस्त्रवेदनाद्वारत्रयम् १४५ नि० बादरनिगोदपरिमाणम् ४७ वनस्पतिजीवास्तित्वे लिङ्गम् । १६१-१६२ ,, मांसाद्युपभोगार्थ १४६ ,, १४७ ,, उपभोगविधिः, आहा (जन्मवृद्धयादि) ६५ जीववधः - रादिरातोद्यादिश्च । ४८ वनस्पत्यारम्भतत्परिहाराभ्यां १६३ ,, उक्तशेषद्वाराणां पृथिव्याः सा१४८,, उपभोगोपसंहारः, वधहेतुश्च ६१ बन्धमुनित्वे ६६ दृश्यम् ७० १४९ ,, वनस्पतेः समासद्रव्यशखं कल्प ॥ पञ्चम उद्देशकः ॥ ४९ अण्डजादित्रसभेदकथनपूर्वकं संसान्यादि । १५२ नि० पृथ्वीत्रसद्वारसादृश्य, नाना- । रस्वरूपम् ॥१९॥

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