Book Title: Angakaradi Laghu Bruhad Vishayanukramau
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 23
________________ आचाराने बृहत्क्रममा ॥२१॥ वक्रता, भवे नारकादि, शीले १९२॥ ,, कर्मनिक्षेपाः, नामस्थापनाद्रव्य- ६७ संसाराभिष्वङ्गिस्वरूपम् क्षान्त्यादि, भावे जीवाजीवयोः ८६ प्रयोगसमुदानेर्यापर्थिकाऽऽधा- | ६८ जराद्यभिभवेऽर्थस्यात्राणत्वम् १०८ १८२ नि० मूलनिक्षेपाः (६) ८७ तपःकृतिभावकर्मभेदेन (वर्ग- ६९ स्वकृतकर्मफलसुखदुःखयोर्शानेऽ१८३ ,, भावमूलस्य त्रैविध्यम् , औदणास्वरूपं मूलोत्तरप्रकृतिस्थि क्लैव्यम् १०९ यिक उपदेष्टा आदिः (विनय त्यनुभावप्रदेशबन्धाः ) ९२|७० यौवने धर्मोद्यमः। न कषायादि) ८८ १९३ ,, अष्टविधकर्मणाऽधिकारः ९८ | ७१ क्षणे द्रव्ये त्रसादि, क्षेत्रे कर्मभूमयः, १८४ ,, स्थाननिक्षेपाः (१५) | ६३ गुणमूलस्थानयोरक्यं प्रमत्तस्व- काले तृतीयचतुर्थारको, भावे क| १८५ ,, शब्दादिविषयेषु मूलस्थानत्वम् ८९ रूपं मात्रादिममत्वं च (परशुराम- मणि न्यूनकोटिसागरता (ध्रुव,, पादपदृष्टान्तेन कर्मणः संसा- चाणक्य-जरासिन्धुदृष्टान्ताः) प्रकृतयः) नोकर्मणि आलस्यारप्रतिष्ठितमूलत्वम् ९० १९४ नि० स्वजनत्यागात्कषायकर्मभ (१३) द्यभावः ,, कर्माणि मोहनीयमूलानि का ०१ | ७२ यावदिन्द्रियशक्ति आत्मार्थोपदेशः ११० ममूलानि वा, ततश्च संसारः | १९५ ,, स्नेहासक्तत्वेन जन्ममरणप्राप्तिः । , मोहनीयस्य द्वैविध्यम् ६४ जरायामिन्द्रियाणां शिथिलता (इ. ॥ द्वितीये प्रथमः २-१॥ ,, कर्मणि कषायाणां प्रधानका न्द्रियनिरूपणम् ) १०३ | ७३ अरतिरहितो मुच्येत रणत्वं, तेषां स्थानविशेषाश्च ९१ ६५ वार्धक्ये लोकावगीतत्वम् (धन- | १९६ नि० संयमावधावनहेतवः १९० ,, कषायनिक्षेपाः (८) वृद्धदृष्टान्तः) १०५ ७४ अनाज्ञावर्तिनामुभयभ्रष्टत्वम् १९१ ,, संसारः पञ्चधा J६६ प्रशस्तमूलस्थानम् , अप्रमादः १०७ ] ७५ संसारविमुक्तस्वरूपम्

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