Book Title: Amarbharti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ १ भारतीय संस्कृति का सजग प्रहरी भारत की संस्कृति - भारत के जन-जन के मन-मन की विराट भावनाओं का महान् प्रतीक है, महान् संकेत है । यह संस्कृति संगम की संस्कृति है, मेल-मिलाप की संस्कृति है । संस्कृति का अर्थ मात्र इतना ही न समझेंसाहित्य, संगीत, चित्र और नृत्य कला, यह सब होकर भी यदि जन जीवन में सादगी, संजीदगी, सहयोग और सहकारिता नहीं, तो भारतीय चिन्तन में और भारतीय विचार मन्थन में - उसे संस्कृति कहना एक गुरुतर अपराध होगा । भारत की संस्कृति उस कूप के समान नहीं है, जो अपने आप में बन्द पड़ा रहता है. बल्कि वह गंगा के उस सदावाही विशाल प्रवाह के तुल्य है, जो अपने दायें-बायें सरसता और मधुरता का अक्षय भण्डार बिखे ता चलता है । अपनी महान् निधि को मुक्त हाथों लुटाता चलता है और साथ ही वह इधर-उधर से आ मिलने वाले लघु-लघु जल प्रवाहों को अपना विराट रूप भी देता चलता है । भारत की संस्कृति का यह एक महतोमहान् संलक्ष्य रहा है, कि वह बहुत्व में एकत्व का अधिष्ठान बने, भेद में अभेद का महास्वर झंकृत करे और विरोध में भी विनोद का मधुर संगीत अलाप सके । भारत की पुण्य भूमि पर नये-नये दर्शन आए, नये-नये धर्म आए और नये नये पन्थ आए - कुछ काल तक उन्होंने अपने अस्तित्व को अलग-थलग रखा, किन्तु अन्त में वे सब सह अस्तित्व के वेगवान् प्रवाह में विलीन हो गए, एकमेक हो गये। उन सब का एक संगम बन गया और यही भारतीय संस्कृति है । यही भारतीय सभ्यता है । Jain Education International ( ३ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 210