Book Title: Amantran Arogya ko
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ कितने प्रभावों से घिरा हुआ है चिन्तन / मन प्रतिशोध और घृणा मिथ्या आग्रह और धारणा रूढ़ मान्यताएं / मिथ्या अभिनिवेश हिंसा, अपराध और क्लेश और भी न जाने कितने भावात्मक उद्वेग कहां हैं स्वस्थ संवेग, अन्तः प्रवेश इनसे त्रस्त / ग्रस्त है हमारा चिन्तन बना हुआ है दुर्बल / रुग्ण / विकृत मन | समस्या की तमिस्रा में एक आशा विधायक दृष्टि और मनोबल की दीप शिखा महाप्रज्ञ की अन्तःप्रज्ञा से निःसृत आरोग्य की मीमांसा जगाएगी नई जिज्ञासा । चिन्तन और मन की उलझन पाएगी स्वतः समाधान होगा एक नया प्रस्थान जो बनाएगा व्यक्ति को महान् । मुनिश्री दुलहराज का सहज योग प्राप्त कर आत्मीय सहयोग प्रस्तुत है महाप्रज्ञ की नवीन कृति आरोग्य के नए क्षितिज की प्रस्तुति । Jain Education International For Private & Personal Use Only मुनि धनंजयकुमार www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 236