Book Title: Agam Sampadan Ki Yatra
Author(s): Dulahrajmuni, Rajendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 5
________________ होती है और जैसे-जैसे विषयों के प्रति अनासक्ति होती है वैसे-वैसे उत्तम तत्त्व उपलब्ध होता है। यह विकास का क्रम हर वस्तु पर घटित होता है। आगमदोहन के कार्य से बहुश्रुतता मिलती है और बहुश्रुतता से आगम-दोहन के कार्य को गति मिलती है। सामने कोई निश्चित लक्ष्य होता है तो अनायास ही आदमी बहुत जान लेता है। उस निमित्त के बिना उतना जानने का अवसर नहीं आता। प्रस्तुत पुस्तक में जो विषयों की विविधता है, उसका निमित्त आगम-दोहन है। इस कार्य के लिए धर्म, दर्शन, राजनीति, आयुर्वेद, नीति आदि-आदि शाखाओं का अध्ययन अपेक्षित होता है। उसी अध्ययन-ज्योति के कुछ स्फुलिंग प्रस्तुत पुस्तक में हैं। वे समय और चिंतन की विभिन्न धाराओं में अभिव्यक्त हुए हैं। लेखक ने सहज सरल शैली और भाषा में इन्हें अभिव्यक्ति दी है। प्रस्तुत पुस्तक से पाठक को रुचि-परिष्कार और ज्ञान-परिवर्धन दोनों ही प्राप्त होंगे। -मुनि नथमल (आचार्य महाप्रज्ञ) रायपुर १५ सितम्बर १९७०

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