Book Title: Agam Padyanam Akaradikramen Anukramanika 01
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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एवं तु समणा एगे, अबलं
एवमाइ उ जा भासा, एवं तु समणा एगे, अबलं (सूत्र.) २०६ एपि रासओ ते (विशे.) २४७३ एवं सप्पणयसरलमहुराति (ज्ञाता.) २९ एवं तु समणा एगे, मिच्छ- (सूत्र.) ५२४ एवंपि होज्ज मुत्ता (विशे.) २०२२ एवं समुट्ठिए भिक्खू, (सूत्र.) २१० एवं तु समणा एगे, मिच्छ- (सूत्र.) ५२७ एवं पीइविवुड्डी विवरीयऽ- (ओघ.) भा.१३९ एवं समुट्ठिए भिक्खू, (उत्त.) ६६४ एवं तु समणा एगे, मिच्छा- (सूत्र.) ३७ एवं फुडवियडंमिवि (विशे.) ३१२१ एवं सरीरसंलेहणाविहिं (म.प.) १८५ एवं तु समणा एगे, मिच्छा- (सूत्र.) ५९ एवं बज्झन्भंतर० (विशे.) ३११ एवं सविसयसच्चे (विशे.) २२७२ एवं तु समणा एगे, वट्ट- (सूत्र.) ६३ एवं बद्धमबद्धं आएसाणं (आ.नि.)१०२३ एवं सव्वं चिय नाण० (विशे.) ४५८ एवं तु समणुचिण्णं (आचा.) २८४ एवं बहुप्पयारं तु (म.प.) ३६३ एवं सव्वपसंगो (विशे.) १०४ एवं तु सेहंपि अपुट्ठधम्म- (सूत्र.) ५८२ एवं बहुहिं कयपुव्वं, (सूत्र.) २९५ एवं सव्वम्मिऽवि वन्नि (आ.नि.) भा.१८५ एवं तु सेहेवि अपुट्ठधम्मे (सूत्र.) ५९२ एवं बुदिमइगओ गब्भे (त.प.) प्र.१ एवं सव्वविमुक्खो (विशे.) २५२४ एवं तुह न जियपरि० (विशे.) २५९५ एवं भमराहरणे अणिय- (दश.) ९७ एवं सव्वस्सासेस० (विशे.) ३५५३ एवं ते कमसो बुद्धा, (उत्त.) ४७३ एवं भवसंसारे संसरति (उत्त.) २८६ एवं ससंकप्पविकप्पणासु, (उत्त.) १२३४ एवं ते रामकेसवा, (उत्त.) ७९१ एवं भव्वुच्छेओ कोट्ठा- (विशे.) १८२७ एवं ससरक्खे उदउल्ले (आ.) प्र.३ एवं थुणित्ताण से रायसीहो (उत्त.) ७३८ एवं भावियचित्तो संथार- (म.प.) ५६९ एवं सामायारी कहिया (आ.नि.)७२२ एवं थेरेहिं इमा अपाव- (ओघ.) भा.१४ एवंभूयनयमयं (विशे.) २३४५ एवं सिक्खासमावन्नो, (उत्त.) १५१ एवं धणिपरिणाम (विशे.) १५० एवं मए अभिथुआ संथार- (सं.प.) १२३ एवं सुत्तत्थाणं
(विशे.) १३७५ एवं धम्मं अकाऊणं, (उत्त.) ६०१ एवं मए पुढे महाणुभावे- (सूत्र.) ३०१ एवं सुत्ताणुगमो (विशे.) १००१ एवं धम्मपि काऊणं, (उत्त.) ६०३ एवं मत्ता महंतरं, (सूत्र.) १४२ एवं सुत्ताणुगमो सुत्त- (विशे.) ३५८४ एवं धम्म विउक्कम्म, (उत्त.) १४२ एवं मरिऊण धीरा (सं.प.) ११७ एवं से उदाहु अणुत्तरनाणी- (सूत्र.) १६४ एवं धम्मस्स विणओ, मूलं (द.वै.) ४१७ एवं माणुस्सगा कामा, (उत्त.) १८९ एवं से उयाहु अनुत्तरनाणी (उत्त.) १७७ एवं नणु सव्वो च्चिय (विशे.) १४८९ एवं मीसज्जायं चरणप्पं (पि.नि.) २७५ एवं से विजयघोसे, जय- (उत्त.) ९७२ एवं नाणे चरणे सामित्ते (उ.नि.) ५९ एवं रुइए थंडिल वसही (ओघ.) १५३ एवं से सिद्धे बुद्धे (इसि.) २४६८ एवं नाणेण चरणेण, (उत्त.) ६७६ एवं लग्गति दुम्मेहा, (उत्त.) ९७१ एवं सेहेवि अप्पुढे (सूत्र.) १६७ एवं नाम विसाणं (विशे.) १५७२ एवं लग्गति दुम्मेहा, जे (आचा.) २३३ एवं सो अम्मापियरं, (उत्त.) ६६८ एवं निमंतणं लद्धं, (सूत्र.) २०३ एवं लिंगेण भावण (पि.नि.) १५३ एवं सो रुइअमई (आ.नि.)३५९ एवं निस्सारे माणुसत्तणे (त.प.) ७९ एवं लेवग्गहणं आणयणं (ओघ.) ३९६ एवं होउऽणवत्था (विशे.) ३२४२ एवं पंचासीई नट्ठा (त.प.) ७८ एवं लोए पलित्तंमि, जराए (उत्त.) ६०५ एवं होउवघाओ आताए (ओघ.) भा.२०१ एवं पकप्पिआणं दसण्ह (आचा.) ५५ एवं लोगंमि ताइणा, (सूत्र.) १३४ एवइमं वा गिण्हह (ओघ.) प्र./१५ एवं पगासमइओ (विशे.) २००० एवं वड्ढइ चंदो परिहाणी (जीवा.) ७०। एवइयं तारग्गं जं भणियं (दे.प.) १२८ एवं पच्चक्खाइपमाण- (विशे.) १७५१ एवं वड्डइ चंदो परिहाणी (दे.प.) १४६ एवइयं तारग्गं जं मणियं (जीवा.) ५२ एवं पडिलेहंता अईयकाले. (ओघ.) २७९ एवं वड्ढति चंदो (सूर्य.) ७६ एवण्हं थोऊणं काऊण (आ.नि.)४२९ एवं पडुपण्णे पविसओ (ओघ.) भा.२६२ एवं वा सव्वाइं गहियाइं (विशे.) ६८४ एवतियं तारग्गं जं (सूर्य.) ५८ एवं पयाण निवहो (विशे.) १०७८ एवं विगिचिउं निग्गयस्स (ओघ.) ६१८ एव परज्झा असई परक्कमे (म.प.) ३४५ एवं परिहायमाणे लोए (त.प.) ५४ एवं विज्जाजोए विसंजुत्तस्स (ओघ.) ६०४ एवमकयत्थकाले (विशे.) ३२२१ एवं पवयणसुयसारपारगो (म.प.) १४ एवं विणयजुत्तस्स, (उत्त.) २३ एवमजीवावि पइप्पएस (विशे.) २४७१ एवं पाओवगमं इंगिणि (म.प.) ५३७ एवं विप्पडिवनेगे, (सूत्र.) १७५ एवमजोग्गा जोग्गा (विशे.) ६३६ एवं पाओवगमं निप्पडिकम्मं (म.प.) ५४५ । एवं विवयंति नया (विशे.) ७२ एवमणुचितंतस्स तस्स (आ.नि.)३५२ एवंपि अपरिचत्ता काले (ओघ.) भा.१४९ एवं विसेसियंमिवि (विशे.) ३११९ एवमणुचिंतयंतस्स (उ.नि.) ४१५ एवंपि तत्त विहरन्ता (आ.) ८६ एवंविहा गिरा मे वत्तव्वा (आ.नि.)१४७७ एवमणुचिंतयंता सुविहिय! (म.प.) ५६८ एवंपि दिट्ठफलया (विशे.) १६१८ एवं विहिय पुहुत्ते (विशे.) २२९६ एवमणुचिंतयंतो भावणु- (म.प.) ३७९ एवंपि न सो पुज्जस्स (विशे.) २८८८ एवं वुत्तो नरिंदो सो, (उत्त.) ६९३ एवमणुद्धियदोसो माइल्लो (म.प.) ५० एवंपि भण्णमाणो (विशे.) २४८१ एवं सउ जीवस्स वि (दश.) ६५ एवमणुसुत्तमत्थं (विशे.) १००८ एवंपि भव्वाभावो (विशे.) १८२४ एवं सड्ढकुलाइं चमढि- (ओघ.) भा.१२५ एवमन्नाणिया नाणं, (सूत्र.) ४३ एवंपि भाणभेओ वियावडे (ओघ.) भा.१९९ एवं सदेवमणुआसुराएँ (आ.नि.) भा.१०५ एवमहिंसाभावो (विशे.) १७६२ एवंपि भूयधम्मो (विशे.) १५९७ एवं सद्दो किरिया (विशे.) २८८३ एवमाइ उ जा भासा, (द.वै.) २८४
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