Book Title: Agam Padyanam Akaradikramen Anukramanika 01
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 125
________________ संति च्चिय ते भावा संसत्तभत्तपाणे मत्तग संति च्चिय ते भावा (विशे.) १७०१ संपाइमतसपाणा धूलि- (ओघ.) ७१६ संवच्छरमुक्कोसं अंत- (आ.नि.)१४५८ संति पंच महब्भूया (सूत्र.) ७ संपातिमरयरेणूपमज्जणट्ठा (ओघ.) ७१३ संवच्छरस्स सुंदर! (दे.प.) २२८ संति पंच महब्भूया, (सूत्र.) १५ संपुण्णवाहिणीओ वि (इसि.) ३३।१५ संवच्छरेण धूअं अमूढ- (आ.नि.) भा.३४ संतिमे तउ आयाणा, (सूत्र.) ५३ संफरिसणमामोसो (विशे.) ७८१ संवच्छरेण भिक्खा (आ.नि.)३१९ संतिमेय(ए) दुवे ठाणा, (उत्त.) १२९ संबंधणसंजोगे खित्ताईणं (उ.नि.) ६३ संवच्छरेण भिक्खा लद्धा (सम.) १०५ संतिमे सुहुमा पाणा, (द.वै.) २३२ संबंधणसंजोगो (उ.नि.) ४६ संवच्छरेण होहिइ अभि- (आ.) ११२ संतिमे सुहुमा पाणा, (द.वै.) २७० संबंधणसंजोगो कसाय- (उ.नि.) ६१ । संवच्छरेण होही अभिणि- (आ.नि.)२१६ संतिस्स कुमारत्तं मंडलिय- (आ.नि.)२९२ संबंधणसंजोगो संसाराओ (उ.नि.) ६२ संवच्छरेण होही अभिणि- (आ.नि.) भा.८१ संती कुंथू अ अरो (आ.नि.)२२३ संबंधलक्खणाए (विशे.) ३५५९ संवच्छरेणावि य एगमेगं, (सूत्र.) ७२० संती कुंथू अ अरो (आ.नि.)४१७ संबंधिबंधवते सव्वे जीवा (म.प.) ५९६ संवच्छरेणावि य एगमेगं, (सूत्र.) ७२२ संते आउयकम्मे धरई (दश.) भा.७ संबंधि बंधवेसु अन (म.प.) ३७६ संवच्छरेणावि य एगमेगं, (सूत्र.) ७२२ संते जम्मे पसूयंति (इसि.) १५।२२ संबंधोवक्कमओ (विशे.) ९१६ संवट्टगवाए य, णेगहा . (उत्त.) १४७४ संतोवसंतधिइमं परीसह- (म.प.) १९३ संबद्धसमकप्पा उ, अन्न- (सूत्र.) २१२ संवट्ट मेह आयंसगा य (आ.नि.)१८८ संत्तपयं पडिवन्ने (विशे.) २९१९ संबद्धाऽसंबंद्धो (विशे.) ७७५ संवट्टियचउरसी० (विशे.) २७६७ संथरे सव्वमुझंति, चउ- (पि.नि.) ४०० संबुज्झमाणे उ णरे (सूत्र.) ४९३ संवरवरजलपगलियउज्झर- (नन्दी) १५ संथारं फलगं पीढं, (उत्त.) ५१५ संबुज्झमाणे पुणरवि (आ.) ७० संवरियासवदारा अव्वा- (आ.नि.)१४६५ संथारगभूमितिगं आय- (ओघ.) २०३ संबुज्झह किण्ण बुज्झहा (सूत्र.) ८९ संवरे अणियट्टी य, (सम.) १५० संथारग्गहणाए वेंटिअ- (ओघ.) २०४ संबुज्झहा जंतवो! (सूत्र.) ३९१ संवरो निज्जरा चेव (इसि.) ९७ संथारपायदंडगखोमिअ- (ओघ.) ३६५ संबुद्धो सो तहिं भयवं, (उत्त.) ७५० संववहारट्ठाए (विशे.) १३७७ संथारपायदंडगखोमिय (पि.नि.) ४६ संबुद्धो सो भयवं संवेग- (उ.नि.) ४४० संववहारोऽवि बली (विशे.) २३८० संथारयपव्वज्जं पव्वज्जइ (भ.प.) ३३ संबोहण परिच्चाए, (आ.नि.)२०९ संवासो उ पसिद्धो अणु- (पि.नि.) ११७ संथारसिज्जाऽऽसणभत्तपाणे, (द.वै.) ४४३ संभरसु सुअण! जंतं (भ.प.) १५८ संवाहिया दुक्कडिणो (सूत्र.) ३४४ संथारुत्तरचोलगपट्टा (पि.नि.) भा.९ संभवओ जिणनाम (विशे.) ३०८५ संविग्गअण्णसंभोइयाण (आ.नि.)भा.२४४ संथारुत्तरपट्टो अड्ढाइ- (ओघ.) ७२४ संभावणेऽविसद्दो देउलि (ओघ.) भा.४० संविग्गमणुण्णाए अइंति (ओघ.) भा.९६ संदिट्ठा संलिहिउं (ओघ.) ५८६ संभिण्णं पासंतो लोगम- (आ.नि.)१२७ संविग्गमसंविग्गा संविग्ग (ओघ.) २९९ संदिवो संदिट्ठस्स चेव (आ.नि.)७०० संभिन्नं पासंतो (विशे.) १३४२ संविग्गसंनिभद्दग अहप्प- (ओघ.) ११५ संदिस्संतं जो सुणइ (पि.नि.) २३६ संभिन्नग्गाहणे (विशे.) १३४४ संविग्गसंनिभद्दग सुन्ने (ओघ.) १०५ संदीणमसंदीणो संधि- (उ.नि.) २०७ संभूय सुभद्द सुदंसणे (सम.) १३२ संविग्गा भीयपरिसा य, (ग.प.) १२८ संधए साहुधम्म (सूत्र.) ५३१ संमत्तस्स सुयस्स य (आ.नि.)८११ संविग्गेसु पवेसो संविग्ग- (ओघ.) १०४ . संधिज्जा आरियं मग्गं (इसि.) १९।४ संमद्दमाणी पाणाणि, (द.वै.) ८८ संवुडकम्मस्स भिक्खुणो, (सूत्र.) १४३ संधुद्दिटुं सोउ एइ दुयं (पि.नि.) २०८ संमद्दमाणे पाणाणि, (उत्त.) ५१४ संवुडे से महापन्ने, (सूत्र.) ५०९ संनाइपिंडं जेमेइ, निच्छई (उत्त.) ५२७ संमुच्छिम कम्माकम (विशे.) २७०४ संवुडे से महापन्ने, (सूत्र.) ५३४ संनिहिं च न कुव्विज्जा, (द.वै.) ३५८ संमुच्छिम पुव्वकोडी (अनु.) १११ संवेगजणिअहासो (उ.नि.) ४१९ संनिही गिहिमत्ते य, (द.वै.) १९ संमुच्छिमाण एसेव, (उत्त.) १५५२ संवेगसमावण्णो माई भत्तं (सू.नि.) १९२ संपइ सुत्तप्फासिय (विशे.) ९९५ संयोयणाए दोसो जो (पि.नि.) ६३८ संवेगो निव्वेगो विसय- (दश.) ३४९ संपज्जलिया घोरा, अग्गी (उत्त.) ८६३ संरंभ समा० । कार्य (उत्त.) ९२७ संसग्गितो पसूयंति (इसि.) ३३।१४ संपत्ते बलविरिए सव्व- (म.प.) ६४३ संरंभसमारंभे, आरंभे (उत्त.) ९२३ संसज्जइ धुवमेअं अपेहियं (ओघ.) २५९ संपत्ते भिक्खकालंमि, (द.वै.) ६० संरंभ समा० । वयं (उत्त.) ९२५ संसज्जिमम्मि देसे (पि.नि.) ५९३ संपयगाहित्ति नओ (विशे.) २९७२ संलेहणा य दुविहा (म.प.) १७६ संसज्जिमेहि वज्जं अगर- (पि.नि.) ५३८ संपयमत्थाणुगमे (विशे.) १०१४ संलोकणिज्जमणगारं, (सूत्र.) २७६ संसट्टेण य हत्थेण, (द.वै.) ९५ संपयममुत्तदारं अइंदियत्ता (दश.) भा.४० संवच्छरं वाऽवि परं (द.वै.) ५१० संसट्टेयरहत्थो मत्तोऽविय (पि.नि.) ६२६ संपयमोहाईणं (विशे.) ९७१ संवच्छरं साहियं मासं (आ.) ४५ संसत्तं तत्तो च्चिय परिद्ध- (ओघ.) ५०५ संपरायं णियच्छंति, (सूत्र.) ४१८ संवच्छरं सुविणं लक्खणं (सूत्र.) ५४३ संसत्तग्गहणी पुण छायाए . (ओघ.) भा.१८५ संपसारी कयकिरिए. (सूत्र.) ४५२ संवच्छरबारसरण होही (ओघ.) भा.१५ संसत्तभत्तपाणे मत्तग (ओघ.) भा.२३१ १०८

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