Book Title: Agam 25 Prakirnak 02 Atur Pratyakhyan Sutra
Author(s): Veerbhadra Gani, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan
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खण्ड:-२ दृष्टान्तसमुच्चयः
२२१
किलिस्ससि ?, तेण भणियं-किलेससहं मे सरीरं वावारंतरं चेयाणि नत्थि महग्घाणि य वासारत्ते दारुगाणित्ति निव्वहियव्वा य पइण्णत्ति अओ करेमित्ति, रण्णा भणियं-पुज्जंतु ते मणोरहा, तुमं चेव बितिज्जगं पूरिउं समत्थो न पुण अहंति निग्गओ, तेण कालेण पूरिओ । ३३. क्रयविक्रयध्याने श्रीसंवेगरङ्गशालामध्ये नन्दकथा । पाडलिपुत्तं नगरे, बहुसमरविढत्तविजयजसपसरो । आसि जयसेणनामो, नरनाहो भूरिगुणकलिओ ।।१।।
तत्थ य पुरम्मि अधरिय-कुबेरधणवित्थरा परिवसंति ।
नंदपमोक्खा वणिणो, जिणदासाऽऽई सुसड्ढा य ।।२।। अह एगम्मि अवसरे, समुद्ददत्ताऽभिहाणवणिएण । चिरकालियं सरोवरमाऽऽरद्धं खाणिउं एक्कं ।।३।।
तत्थ खणिजंतम्मि, उड्डेहिं पुव्वपुरिसपक्खित्ता । लद्धा सुवन्नकुसया, चिरकालियकिट्टचयमलिणा ।।४।। तो लोहमय त्ति वियाणिऊण, वणियाण तेहिं उवणीया ।
जिणदासेणं गहिया य, दोन्नि नाऊण लोहमया ।।५।। अह तेण नियंतेणं, सम्मं नाउं सुवन्नमइय त्ति । परिमाणाऽइक्कमभया, दिन्ना तित्थयरभवणम्मि ।।६।। अवरे पुणो न गहिया, नवरं नंदेण जाणमाणेण । आढत्ता ते घेत्तुं, समहियअत्थव्वएणाऽवि ।।७।।
उड्डा य इमं भणिया, लोहकुसे मा परस्स देज्जाह । अहमिच्छियं दलिस्सामि, तुम्ह तेहिं च पडिवण्णं ।।८।। अवरम्मि दिणे मित्तेण, सो बला भोयणऽट्ठया नीओ ।
तेण य पुत्तो भणिओ, जह तह गिण्हेज्जसु कुस त्ति ।।९।। पडिसुयमिमं सुएणं, भोत्तुं मित्तग्गिहे गओ ताहे । अञ्चंतवाउलमणो, भोत्तुं च गिहंमुहो चलिओ ।।१०।।
अमुणियपरमत्थेण य, समऽहियमोल्ल त्ति नो कुसा गहिया ।
तेण सुएणं उड्डा य, जायकोवा परत्थ गया ।।११।। जत्तो तत्तो य खिवंतयाण, अह कहवि ववगए किट्टे । एगस्स उ कुसयस्सा, पयडं चामीयरं जायं ।।१२।। रायपुरिसेहिं तत्तो, उड्डा गहिउं समप्पिया रन्नो । पुट्ठा य कत्थ अन्ने, विक्कीया कहह कुसग त्ति ।।१३।।
तेहिं कहियं नराऽहिव !, दिन्ना जिणदाससेट्ठिणो दोन्नि ।
अवसेसा नीसेसा, उवणीया नंदवणियस्स ।।१४ ।। एवं भणिए रन्ना, वाहरिउं पुच्छिओ हु जिणदासो । सिट्ठो य तेण सव्वो, जहट्ठिओ नियगवुत्तंतो ।।१५।।
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