Book Title: Agam 25 Prakirnak 02 Atur Pratyakhyan Sutra
Author(s): Veerbhadra  Gani, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 285
________________ २४४ पार । अपिच-जहिं सोहहिं कुसुमियकंचणारपुन्नायनायफुल्लि मचकुंदकुसुमपरिमलु अणंतु, पसरइ असेस वासिय दियं ।। ११ । । बहुकुसुमियाओ नोमालियाओ, महमहहिं सुअंधओ पाडलाओ । एलालवंगकक्कोलियाओ, रेहंति दक्खक्खज्जूरियाओ ।। १२ ।। अन्नेवि कयलियनालियरपमुह, जहिं सहहिं विसेसिण रुक्ख विविह । जा सयमवि गयणुम्मत्तु नाइ मंडय तिलयण पियरुक्खराई ।। १३ ।। गायइ व विहंगमकलरवेहिं, नच्चइ व विडविपल्लवकरेहिं । हसइ व फुल्लमाल्लियविसेण, कृजइव मत्तकोइलरवेण ।। १४ ।। हक्कारइ चलभुयलयाहिं, पढइ व्व महुलसुयसारियाहिं । फलभरनमततरुसिंहरएहिं, पणमइ व पियह पयपंकयेहिं ।। १५ ।। आतुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम् मयरंउरसिण बहुपूरिएहिं, रुयइ व्व गलंतिहिं सुभणुस्सेहिं । तहिं दिंति लोय बहु चच्चरीओ, वज्र्ज्जति तत्थ आवाणयाई, परिलुढियभत्तबहुपाणयाई, आहरणविलेवणभूसियाई, रइनिब्भरुकीलहिं मिहुणयाई, नियकंतिहिं सह पुरभामिणीओ, मज्जंति सुरहिं सुहकामिणीओ, इय हरिसपबंधिहिं सयलसमिद्धिहिं निग्र २ पिययमजणकलिओ उज्जाणिहिं पत्तओ, मयणुम्मत्तउ कीलइ सव्वुवि जणु मिलिउ ।। १६ ।। तो गंतूणं उज्जाणपालओ चूयमंजरीहत्थो । विन्नवइ निवं एयं गाहं पढिऊण जह देव ! ।।१७।। चंपयगोरीसयवत्तलोयणा तिलयरेहिरी पत्ता । उज्जाणे महुलच्छी कयसंकेयव्व सह तुमए । । १८ ।। तत्तो वसंतसमए नाएवि निवो पउर अणुक्खित्तो । न गओ बहिं गओ पुण जुगबाहू पिययमासहिओ ।। १९ ।। कलंस य एयस्स तत्थ रयणी समागया तत्तो । कयलीहरए रइसुहमणुहविरं निब्भरं सुत्तो ।। २० ।। एयं च अवसरं जाणिऊण परिवारतुच्छयाईयं । खग्गसद्दाओ राया तत्थ पविट्ठो समा । २१ ।। ता अगणिऊण असं मज्जायं छड्डिउं विगयधम्मो । खग्गेण हणइ गीवाइ भायरं निग्विणो एसो ।। २२ ।। तत्तो य मयणरेहाइकूइ मिलिय पाहरियवग्गे । कवडुत्तरं च काउं किंपिनरिंदो गओ सहिं । | २३ || तत्तो अच्चावत्थं (व्वावण्णं) जुगबाहुं जाणिउं मयणरेहा । होऊण कन्नमूले भणइ तयं महुरवयणेहिं ।। २४ ।। भो भो ! तुमं महायस ! खणंपि खयं मणम्मि मा कुणसु । नियकम्मपरिणइच्चिय जमिहं अवरज्झए न परो ।। २५ ।। Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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