Book Title: Agam 25 Prakirnak 02 Atur Pratyakhyan Sutra
Author(s): Veerbhadra Gani, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan
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खण्डः-२ दृष्टान्तसमुच्चयः
२४३
ता विरम अकज्जेसु ठविऊण मणम्मि गरुयसंतोसं । इहरा न भोगतण्हा नियत्तए हवइ बहुयं च ।।१६।। इच्चाइ तीइ भणियं दूई परिकहइ मेइणीवइणो । तहवि इमो न नियत्तो गहिओ कामग्गहेणऽहियं ।।१७।। वयणाई हियरएहिं सुहासियाइंपि निपुणबुद्धीहिं । मयणभुयंगमविसभावियाण न कमंति हियएसु ।।१८।। ता चिंतइ गयलज्जो जीयंते मह कणिट्ठबंधुम्मि । धेत्तुं इमा न तीरइ ता तं हणिउं हढेणावि ।।१९।। गिण्हामि इमं इय चिंतिऊण छिड्डाइं बंधुणो नियइ । इत्थंतरे पयट्टो वसंतसमओ परमरम्मो ।।२०।। तथाहिं
घणसहयारसरसबहुमंजरिपसरियबहुलपरिमलो, परिमलमिलियभमिरभमरावलिकलरवसवणसुहयरो । सुहयरमहुरपउरपरहुयरवमुच्छियपहीयजणमणो,
जणमणहरणु मयणसंजीवणु सहइ वसंतरिउ महो ।।१।। किंच- जे कप्पूरपरागसंगसुहया एलावणंदोलिणो,
गोलानीलतरंगभंगसिसिरा लीलासरुल्लासिणो । कन्नाडीकुरुलोहनट्टगुरुणो कामानलुद्दीविणो, ते मंदं मलयद्दिमज्झपवहा वायंति जत्थानिला ।।२।। वीणावेणुमुयंगसद्दसुहयं गेयं जहिं गिज्जए, उच्छंगीकयकामिणी इय सुहं दोलासु सेविज्जए । सोऊणं कलकंठकूजियरवं माणं खणेणुज्झिउं, आलिंगति सुनिब्भरं पिययमं थोरत्थणीओ जहिं ।।३।। अपरं च-कुरुवयतरुणो फुल्लंति जत्थ आलिंगणेण तरुणीणं ।
तरुणिपयपहरतुट्ठा असोयतरुणोऽवि वियसंति ।।४ ।। तरुणीमइरागंडूसतोसिया केसरावि कुसुमंति । चंपयतरुणो फुल्लंति सुरहिजलदोहलेहिं च ।।५।। विकसंति तिलयतरुणो तरुणिकडक्खेहिं पेक्खिया जत्य । पुलंति विरहिरुक्खा सोऊणं पंचमुग्गारं ।।६।। एगिदियावि एवं कमसो फरिसाइएहिं विसएहिं । हीरंति तओ तेहिं कह न छलिज्जंति पंचिंदी ? ।।७।। पवणंदोलियमंजीरपसरंतरयच्छलेण सहयारा । हिट्ठा इव महुरज्जे धूलीकीलाए कीलंति ।।८।। दळूण विरहिणीहिं जलियंपिवकुसुमियं पलासवणं । दहणभएण व सित्तो देहो नयणंसुसलिलेहिं ।।९।। न रमंति कनियारे भमरा वण्णुज्जलेऽवि असुअंधे । रूवेण किं व कीरइ ? गुणेहिं छेया हरिजंति ।।१०।।
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