Book Title: Agam 25 Prakirnak 02 Atur Pratyakhyan Sutra
Author(s): Veerbhadra Gani, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan
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२९४
आतुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम्
बाला० हवइ संलेखणा नउ कर्ता गुरुनई कहीनइं जिम ते पंडितमरण पडिवजइ ते कहइ छइ । इछामि क. इछउं हे भगवन् ! उत्तमटुं क० अनशन करवा । ते अनशन करवा वांछतउ प्रथम स्युं करइ ते कहीइ छइ । पडिक्कमामि क. सामान्यपणइं पाप थकी निवर्तउं छु । पूर्वइं अज्ञानादिकई तथा अणसांभलवा माटइ पाप कर्यु छइ तेह थकी निवर्त्तउं छु । हवइ विशेष थकी त्रिहूं कालनूं पडिकमणूं कहइ छइ । अइयं क. अतीतपूर्वइं करयुं जे पाप तेह थकी निंदा गर्दा स्वरूपइं निवर्तउ छउं । अणागयं क० अनागत आगलिहस्यइं जे पापारंभा ते परिहरवा स्वरूपई पडिक्कमू छु । पच्चूप्पनं प्रत्युत्पन्नक. वर्तमान कीनो जे सावद्यारंभ ते संवरण करवइ करी पडिक्कमूं । ते कीह उपाय पडिक्कमूं छु ते कहइ छइ । कयं. क. “कीधउं स्वयमेव, तथा कराव्युउं अनेराथीइं तथा अनुमोद्यउं 'जे ए वैरी भलउ मरायुं' इत्यादि जे पाप करयुं होइ ते पडिक्क छु । हवइ ए पाप मिथ्यात्व, अविरति, कषाय अनइ योग ए चिहुं हेतइ बांधीइ ते भणीए चिहुनूं पडिक्कमणूं कहीइ छइ । मिछत्तं क० मिथ्यात्व अभिग्रहिक मिथ्यात्वादि पांच प्रकार । तथा असंयम एक प्रकारइं तथा कषाय चिहुं प्रकारइं । पापप्रयोग क० पाडूया [?] योग मन-वचन-कायरूप तेणइ करी बांध्यउ जे पाप ते पडिक्कमूं छु ।
हवइ 'मिछा दंसणपरिणामेसु वा' अहींथी प्रारंभीनइ ‘पडिबुधस्स वा' एह छेहडा लगइ जो मे देवसिओ राइओ उत्तमढे अइक्कमो, वईक्कमो, अईयारो, अणायारो तस्स मिछामि दुक्कडं । एहवओ प्रथम संबंध जोडीई पछइ एहवओ अर्थ कहीइ मिछा. मिथ्यादर्शनपरिणाम कहतां मिथ्यात्त्वनो अध्यवसाय छतइ जे मननइ देवसिक तथा रात्रिक अतिक्रम-व्यतिक्रम अतीचार-अनाचार लागो हुइ ते मिथ्या दुष्कृत करूं छु । इम सघले कहिदुं । अतिक्रमादिकनो अर्थ आगलि कहीस्यइ । तथा इहलोग क० मनुष्यलोकनइ विषइ हिंसादि अभिप्रायें करी अतिक्रमादिक कर्यो होइ ते मिथ्या दुष्कृत करुं छु । तथा परलोकनई विषइ मनुष्य थकी व्यतिरिक्त तिर्यंचादिकनई विषइ जे अतिक्रमादि करयो होइ ते मिछामि दुक्कडं । __ तथा सचित्तेसु वा. क. पृथिव्यादिकसचित्तवस्तुनइं विषइ जे संघट्टादिक कर्यो होइ ते मिच्छामि दुक्कडं । तथा अचित्तेसु वा क० दुःपडिलेहा कंबलादिकनइ विषइ शयनादि कर्यु होइ । अथवा सुवर्णादिक अचित्तवस्तु पडी देखीनइ लेवानूं मन थयु होइ ते मिच्छा दुःकृत । तथा पंचसुक० पांच इंद्रियना अर्थ विषइ शब्दरूपगंधरसस्पर्शमनोज्ञअमनोज्ञनई विषइ राग-द्वेष कर्यो होइ ते मिछामि दुःकृत । तथा अज्ञानध्यानादिक छतइ मजनइ जे अतिक्रमादि लागो होइ ते पडिक्क छु । एहवो संबंध सगलइ जोडीइ ।
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