Book Title: Agam 25 Prakirnak 02 Atur Pratyakhyan Sutra
Author(s): Veerbhadra  Gani, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 313
________________ २७२ आतुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम् तं निसुणिऊण नंदो गिहत्थधम्म दुवालसविहं पि ।। पडिवज्जिऊण तह पणमिऊण सामिं गिहं पत्तो ।।५।। सम्मं गिहत्थधम्म परिपालइ वड्डमाणपरिणामो । संसारुत्तिन्नं पिव अप्पाणं मन्नमाणो सो ।।६।। अह अन्नया असंजयजणस्स संसग्गओऽणुदिवसं पि । विरहम्मि सुविहियाणं सिढिलीहूयम्मि सम्मत्ते ।।७।। जायम्मि जेह्रमासे पोसहसालाए पोसहपरस्स । कयअट्ठमतवचरणस्स नंदमणियारसेट्ठिस्स ।।८।। तन्हा-छुहाकिलंतस्स वासणा एरिसा समुप्पन्ना । ते धन्ना सप्पुरिसा ते च्चिय जीवंतु जियलोए ।।९।। कारावियाओ जेहिं पुक्खरिणीओ सुसीयलजलाओ । जासु जणो वहइ जलं पियइ तहा मज्जइ जहिच्छं ।।१०।। ता अहमवि नरनाहं आपुच्छिय कारवेमि पोक्खरिणिं । इय चिंतिउं पभाए पारित्ता पोसहं सेट्ठी ।।११।। परिहियवलक्खवत्यो पाहुडहत्थो निवं समल्लीणो । तप्पुरओ उवणेउं उवायणं तेण विन्नत्तं ।।१२।। देव ! तुहाणुनाए पुरपरिसरमेइणीए पोक्खरिणिं । काउमभिप्पाओ मे तोऽणुनाओ नरिंदेण ।।१३।। तत्तो य तेण हिंताल-ताल-ताली-तमालपमुहेण । सुसिणिद्धबहलसच्छायवच्छनियरेण परियरिया ।।१४।। मुत्ताहलावलीविमलसलिलसंभारपूरिया परमा । कलहंसावलिविलसंतबहलकल्लोलपरिकलिया ।।१५।। कल्हार-कमल-कुवलयपरायविच्छुरियनीरसंभारा । मयरंदमत्तभमरउलरोलमुहलियदिसावलया ।।१६।। परिभमिरगरुयकरिमयर-मच्छ-मंडुक्क-कच्छवऽच्छन्ना । कारविया पोक्खरिणी नंदा नामेण नंदेणं ।।१७।। पहियजणदाणसाला वि परिसरे तीए कारिया रम्मा । अप्पाणं कयकिच्चं तक्करणे मन्नमाणेण ।।१८।। मज्जंतो भुंजतो जलं पियंतो य तत्थ कीलंतो । कुणइ गुणग्गहणं से समग्गलोगो वि अन्नोन्नं ।।१९।। नंदमणियारसेट्ठी सो च्चिय धन्नो जयम्मि सो जियउ । जेणेसा कारविया पोक्खरिणी सिसिरजलभरिया ।।२०।। इय निसुणंतो नंदो मुन्नइ अप्पाणममयसित्तं व्व । अहवा सगुणथुईए हरिसिज्जइ को न जियलोए ? ।।२१।। एवं वच्चंते केत्तियम्मि कालम्मि असुहदोसेण । तस्स सरीरे सोलस संकंता दुस्सहा रोगा ।।२२।। पञ्चक्खाओ वेज्जेहिं तयणु गुरुरोगवेयणक्कतो । मरिउं नियपोक्खरिणीए ददुरो सन्निओ जाओ ।।२३।। धन्नो स नंदसेट्ठी पोक्खरिणी जेण कारिया एसा । इय जणसाहुक्कारं सोउं सो सुमरए जाई ।।२४ ।। विन्नायपुव्वजम्मो विचिंतए फुरियगरुयसंवेगो । अहह ! अणज्जेण मए कह अप्पा पाडिओ पावे ? ।।२५।। Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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