Book Title: Agam 25 Prakirnak 02 Atur Pratyakhyan Sutra
Author(s): Veerbhadra  Gani, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 326
________________ खण्डः - २ दृष्टान्तसमुच्चयः होतं, ताहे ताए मेईए जहावत्तं सिठ्ठे, तओ रुठ्ठो देवाणुभावेण य ताओ सिबियाओ पाडिओ तुमं असरिसीओ परिणेसित्ति खड्डाए छूढो, ताहे देवो भाइ - किह ? सो भाइ- अवण्णो, भणइ-एत्तो मोएहि किंचिकालं, अच्छामि बारस वरिसाणि, तो भणइ - किं करेमि ?, भणइ - रण्णो धूयं दवावेहि, तो सव्वाओ अकिरियाओ ओहाडियाओ भविस्संति, ताहे से छगलओ दिण्णो, सो रयणाणि वोसिरइ, तेण रयणाण थालं भरियं, तेण पिया भणिओ रण्णो धूयं वरेहि, रयणाणं थालं भरेत्ता गओ, किं मग्गसि ? धूयं णिच्छूढो, एवं थालं दिवसे दिवसे गेहए, ण य देइ, अभओ भाइ-कओ रयणाणि ? सो भणइ - छगलओ हगई, अम्हवि दिज्जउ, आणीओ, मडगगंधाणि वोसिरइ, अभओ भाइ-देवाणुभावो, किं पुण ? परिक्खिज्जउ, किह ?, भणइ-राया दुक्खं वेब्भारपव्वतं सामिं वंदओ जाति, रहमग्गं करेहि, सो कओ, अज्जवि दीसइ, भणिओ-पागारं सोवण्णं करेहि, कओ, पुणोवि भणिओ-जइ समुद्दं आणेसि तत्थ व्हासो सुद्धो होहिसि तो ते दाहामो, आणीओ, वेलाए पहाविओ, विवाहो कओ सिवियाए हिंडतेण, ताओ वि से अण्णाओ आणियाओ, एवं भोगे भुंजति बारस वरिसाण, पच्छा बोहितो, महिलाहिवि बारस वरिसाणि मग्गियाणि, दिण्णाणि य, चउव्वीसाए वासेहिं सव्वाणिवि पव्वइयाणि, णवपुव्वी जाओ, एकल्ल विहारपडिमं पडिवण्णी, तत्थेव रायगिहे हिंडइ, सुवण्णकारगिहमागओ, सो य सेजियस्स सोवण्णियाणं जवाणमट्ठसंत करेइ, चेइयच्चणियाए परिवाडिए सेणिओ कारेइ तिसंझं, तस्स गिहं साहू अइगओ, तस्स एगाए वायाए भिक्खा ण णीणिया, सो य अइगओ, ते य जवा कोंचएण खाइया, सो आगओ ण पेच्छइ, रण्णो य चेतियच्चणियवेला ढुक्कइ, अज्ज अट्ठिखंडाणि कीरामित्ति, साधु संकइ, पुच्छइ, तुण्हिक्को अच्छइ, ता सीसावेढेण बंधति, भणिओ य-साह जेण गहिया, तहा आवेढिओ जहा अच्छीणि भूमीए पडियाणि, कोंचओ य दारुं फोंडेतेण सिलिंकाए आहओ गलए, तेण वन्ता, लोगो भणइ-पाव ! एए तेजवा, सो वि भगवं कालगओ सिद्धो य, लोगो आगओ, दिट्ठो मेत्तेज्जो, रण्णो कहियं, वज्झाणि आणत्ताणि, दारं पव्वइयाणि भणंति - सावग ! धम्मेण वड्ढाइ, मुक्काणि, भणइ - जइ उप्पव्वयइ तो भे कविली कड्डे । Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only २८५ www.jainelibrary.org

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