Book Title: Agam 25 Prakirnak 02 Atur Pratyakhyan Sutra
Author(s): Veerbhadra Gani, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan
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खण्ड:-२ दृष्टान्तसमुच्चयः
२६३
चिंतइ य जहा एसो निप्पडिकम्मो मुणी महासत्तो । मा विणसउ ता एयस्स नयणमेएण कणुएण ।।३५ ।। इय चिंतिउं सुभद्दाए झत्ति लहुयत्तयाए साहुस्स । दितीए तीए भिक्खं कणुयं जीहाए संगहियं ।।३६ ।। तत्तो य सुभद्दाभालरुइरसिंदूरविरइओ तिलओ । संकतो साहुनिडालमंडले दोहिं वि न नाओ ।।३७ ।। दट्टण साहुभाले तिलयं उवलद्धछलपवेसाओ । तीए नणंदा-सासुय-भाउज्जायाओ मिलियाओ ।।३८ ।। अक्खंति बुद्धदासस्स पेच्छ नियभारियासुसीलतं । सेवडयनिडालम्मिं पेच्छियतिलयस्स पडिबिंबं ।।३९।। तो जाव बुद्धदासो जोयइ ता तं तहट्ठियं दटुं । संजायपञ्चओ सो झत्ति विरत्तो कलत्तम्मि ।।४० ।। तनाऊण सुभद्दाए चिंतियं पेच्छ केरिसं जायं ? । जायं मज्झ कलंकं मुणिणो वि महाणुभावस्स ।।४।।
विसयमहाविसमोहियमणाण गिहवासबंधबद्धाण । जायंति कलंकाई जियाण जं तं किमच्छरियं ? ।।४२।। ईसा-विसाय-मय-मोह-माणमहियाण निहयबुद्धीण । जायंति कलंकाई जियाण जं तं किमच्छरियं ? ।।४३।। जं मज्झ विसयलालसमणाए गिहवासमहिवसंतीए । जाओ एस कलंको मणयं पि न मे इमं दुक्खं ।।४४।। जं पुण मयंकमणिनिम्मलस्स जिणसासणस्स माल्लिन्नं । मह कज्जे संजायं तं दूमइ माणसे मज्झ ।।४५।। ता जइ जिणिंदसासणमाल्लिनं नो कहं पि अवणेमि ।
तो मज्झ मणसमाही न होज्ज मरणे वि नियमेण ।।४६।। इय चिंतिऊण अत्यमिय दिणयरे भवणजिणवरिंदाण । रइउं पकिट्ठपूयं पमज्जिऊणं महीवीढं ।।४७ ।। तयणु सुभद्दा गिण्हइ महापइन्नं न जाव मालिनं । अवणेमि पवयणाओ न ताव पारेमि उस्सग्गं ।।४८ ।।
जो जिणसासणभत्तो सो अमरो होउ मज्झ पञ्चक्खो ।
अह न वि होही तो मे काउस्सग्गे वि सन्नासो ।।४९।। इय जा काउस्सग्गेण संठिया सा खणंतरं ताव । उज्जोयंतो भवणं समागओ सुरवरो एक्को ।।५० ।। चलचवलकुंडलधरो निम्मलघोलंतमुत्तियकलावो । वरमउड-कडय-केऊर-कंकणाभरणदिप्पंतो ।।५१।।
दिट्ठो य सुभद्दाए तो भणिया तेण साविए ! कहसु । किं संभरिओ अहयं ? भणइ सुभद्दा तओ एवं ।।५२।। जिणसासणमालिन्नं अवणेहि तओ य हरिसिओ अमरो । जंपइ सुंदरि ! इण्डिं खेयं मणयं पि मा कुणसु ।।५३।।
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