Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 15
________________ आगम माना गया है । परोक्ष आगम भी दो प्रकार का है—(१) अलौकिक आगम और (२) लौकिक आगम। केवलज्ञानी या श्रुतज्ञानी के उपदेशों का जिसमें संकलन हो, वह शास्त्र भी आगम की अभिधा से अभिहित किया जाता है। आर्यरक्षित ने अनुयोगद्वार में आगम शब्द का प्रयोग शास्त्र के अर्थ में किया है। उन्होंने जीव के ज्ञानगुणरूप प्रमाण के प्रत्यक्ष, अनुमान, औपम्य और आगम ये चार प्रकार बताए हैं, भगवती व स्थानाङ्ग में भी ये भेद आये हैं । यहाँ पर आगम प्रमाण ज्ञान के अर्थ में ही आया है। महाभारत, रामायण आदि ग्रन्थों को लौकिक आगम की अभिज्ञा दी गई है तो अरिहन्त द्वारा प्ररूपित द्वादशांग गणिपिटक को लोकोत्तर आगम कहा गया है। लोकोत्तर आगम को भावश्रुत भी कहा है। ग्रन्थ आदि को द्रव्यश्रुत की संज्ञा दी गई है और श्रुतज्ञान को भावश्रुत कहा गया है। ग्रन्थ आदि को उपचार से श्रुत कहा है। द्वादशांगी में जिस श्रुतज्ञान का प्रतिपादन हुआ है, वही सम्यक् श्रुत है। इस प्रकार हम देखते हैं कि आगम की दूसरी संज्ञा श्रुत है। श्रुत और श्रुति श्रुत और श्रुति ये दो शब्द है। श्रुति शब्द का प्रयोग वेदों के लिए मुख्य रूप से होता रहा है। श्रुति वेदों की पुरातन संज्ञा है और श्रुत शब्द जैन आगमों के लिए प्रयुक्त होता रहा है। श्रुति और श्रुत में शब्द और अर्थ की दृष्टि से बहुत अधिक साम्य है। श्रुति और श्रुत दोनों का ही सम्बन्ध श्रवण से है। जो सुनने में आता है वह श्रुत हैं। और वही भाववाचक मात्र श्रवण श्रुति है। श्रुत और श्रुति का वास्तविक अर्थ है—वह शब्द जो यथार्थ हो, प्रमाण रूप हो और जनमंगलकारी हो। चाहे श्रमणपरम्परा हो, चाहे ब्राह्मणपरम्परा हो; दोनों परम्पराओं ने यथार्थ ज्ञाता, वीतराग आप्त पुरुषों के यथार्थ तत्त्ववचनों को ही श्रुत और श्रुति कहा है। अतीत काल में गुरु के मुखारविन्द से ही शिष्यगण ज्ञान श्रवण करते थे, इसीलिए वेद की संज्ञा श्रुति है और जैन आगमों की संज्ञा श्रुत है। जैन आगमों के प्रारम्भ में 'सूयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं' वाक्य का प्रयोग है । लम्बे समय तक श्रुत सुन कर के ही स्मृतिपटल पर रखा जाता रहा है। जब स्मृतियां धुंधली हुईं, तब श्रृंत लिखा गया। यही बात वेद और पालीपिटकों के लिए भी है। श्रुत के सम्बन्ध में तत्त्वार्थभाष्य के सुप्रसिद्ध टीकाकार सिद्धसेन गणी ने लिखा है—इन्द्रिय और मन के निमित्त से होने वाला ग्रन्थानुसारी विज्ञान श्रुत है। आगम का पर्यायवाची सूत्र ___अनुयोगद्वार सूत्र में आगम के लिए सुत्तागमे' शब्द का प्रयोग हुआ है। आगम का अपर नाम सूत्र भी है। एक विशिष्ट प्रकार की शैली में लिखे गए ग्रन्थ सूत्र के नाम से जाने जाते हैं। वैदिक परम्परा में गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र १. ३. ४. अनुयोगद्वार भगवती, ५१२१९२ स्थानाङ्ग, ३५०४ अनुयोगद्वार, सूत्र ५ श्रूयते आत्मना तदिति श्रुतं शब्दः –विशेषावश्यकभाष्य-मलधारीया वृत्ति वलीहपुरम्मि नयरे, देवड्ढिपमुहेण समणसंघेण । पुत्थइ आगमु लिहियो, नवसय असीआओ वीराओ॥ श्रुतं ........" इन्द्रियमनोनिमित्तं ग्रन्थानुसारी विज्ञानं यत् ........। -तत्त्वार्थभाष्य टीका २२० [१२]

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