Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्या-प्रज्ञात्ति-व्याख्या करने की प्रज्ञापटुता से ग्रहण किया जाने वाला अथवा व्याख्या करने में प्रज्ञ भगवान् से कुछ ग्रहण करना व्याख्या-प्रज्ञात्ति है।
इसी प्रकार विवाहप्रज्ञप्ति और विबाधप्रज्ञप्ति इन दोनों संस्कृत रूपान्तरों का अर्थ भी निम्नोक्त प्रकार से मिलता है-(१)विवाहप्रज्ञप्ति-जिसमें विविध या विशिष्ट प्रवाहों- अर्थप्रवाहों का प्रज्ञापन-प्ररूपण किया गया हो, उस श्रुत का नाम विवाहप्रज्ञप्ति है। (२) विबाध प्रज्ञप्ति-जिस ग्रन्थ में बाधारहित-प्रमाण से अबाधित तत्त्वों का प्ररूपण हो, वह श्रुतविशेष विबाध-प्रज्ञप्ति है। विषयवस्तु की विविधता
विषयवस्तु की दृष्टि से व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र में विविधता है। ज्ञान-रत्नाकार शब्द से यदि किसी शास्त्र को सम्बोधित किया जा सकता है तो यही एक महान् शास्त्रराज है। इसमें जैनदर्शन के ही नहीं, दार्शनिक जगत् के प्रायः सभी मूलभूत तत्त्वों का विवेचन तो है ही, इसके अतिरिक्त विश्वविद्या की कोई भी ऐसी विधा नहीं है, जिसकी प्रस्तुत शास्त्र में प्रत्यक्ष या परोक्षरूप से चर्चा न की गई हो। इसमें भूगोल, खगोल, इहलोक-परलोक स्वर्ग-नरक, प्राणिशास्त्र, रसायनशास्त्र,गर्भशास्त्र, स्वप्नशास्त्र, भूगर्भशास्त्र, गणितशास्त्र, ज्योतिष, इतिहास, मनोविज्ञान, पदार्थवाद, अध्यात्मविज्ञान आदि कोई भी विषय अछूता नहीं रहा है।
इसमें प्रतिपादित विषयों के समस्त सूत्रों का वर्गीकरण मुख्यतया निम्नोक्त १० खण्डों में किया जा सकता
(१) आचारखण्ड-साध्वाचार के नियम, आहार-विहार एवं पाँच समिति, तीन गुप्ति, क्रिया, कर्म, पंचमहाव्रत आदि से सम्बन्धित विवेकसूत्र, सुसाधु, असाधु, सुसंयत, असंयत, संयतासंयत आदि के आचार के विषय में निरूपण आदि।
(२) द्रव्यखण्ड-षद्रव्यों का वर्णन-पदार्थवाद, परमाणुवाद, मन, इन्द्रियाँ, बुद्धि, गति शरीर आदि का निरूपण।
(३) सिद्धान्तखण्ड-आत्मा, परमात्मा, (सिद्ध-बुद्ध-मुक्त), केवलज्ञान आदि ज्ञान, आत्मा का विकसित एवं शुद्ध रूप, जीव, अजीव, पुण्य-पाप, आस्रव, संवर निर्जरा, कर्म, सम्यक्त्व, मिथ्यात्व, क्रिया, कर्मबन्ध एवं कर्म से विमुक्त होने के उपाय आदि।
(४) परलोकखण्ड-देवलोक, नरक आदि से सम्बन्धित समग्र वर्णन; नरकभूमियों के वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श का तथा नारकों की लेश्या, कर्मबन्ध, आयु, स्थिति, वेदना आदि का तथा देवलोकों की संख्या, वहाँ की भूमि, परिस्थिति देवदेवियों की विविध जातियाँ-उपजातियाँ, उनके निवासस्थान, लेश्या, आयु, कर्मबन्ध, स्थिति, सुखभोग आदि का विस्तृत वर्णन। सिद्धगति एवं सिद्धों का वर्णन।
(५) भूगोल-लोक, अलोक, भरतादिक्षेत्र, कर्मभूमिक, अकर्मभूमिक क्षेत्र, वहाँ रहने वाले प्राणियों की | गति, स्थिति, लेश्या, कर्मबन्ध आदि का वर्णन।
(६) खगोल-सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, तारे, अन्धकार, प्रकाश, तमस्काय, कृष्णराजि आदि का वर्णन।
(७) गणितशास्त्र-एकसंयोगी, द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी, चतुःसंयोगी भंग आदि, प्रवेशनक राशि संख्यात, असख्यात, अनन्त, पल्योपम, सागरोपम, कालचक्र आदि।
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