Book Title: Adhyatma Pravachana Part 1 Author(s): Amarmuni Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra View full book textPage 8
________________ प्रस्तुत पुस्तक 'अध्यात्म-प्रवचन' पूज्य गुरुदेव कविरत्न उपाध्याय श्री जी के उन प्रवचनों का संपादन है, जो उन्होंने कलकत्ता की अध्यात्म-रसिक जनता के समक्ष सन् १९६१ के वर्षावास में वहाँ किए थे। पाठक देखेंगे कि उपाध्याय श्री जी ने अध्यात्म जैसे गंभीर विषय को किस प्रकार अपनी विलक्षण प्रतिभा, समन्वय-बुद्धि एवं आकर्षक, तथा सरस शैली से युग-बोध की भाषा में प्रस्तुत किया है। उनके प्रखर चिन्तन में अध्यात्म के नये-नये उन्मेष खुलते हुए से प्रतीत होते हैं। प्रस्तुत प्रवचनों में मूख्यतया सम्यग्दर्शन पर सर्वांग और विशद विवेचन किया गया है । अन्त के सात प्रवचनों में सम्यग् ज्ञान, प्रमाण, नय आदि ज्ञान के समस्त अंगों पर भी स्पष्ट एवं विस्तृत विश्लेषण हुआ है। सम्यक चारित्र का विवेचन स्वतंत्र रूप से इन प्रवचनों में नहीं आया है। यों सम्यक चारित्र की भी सामान्य चर्चा प्रवचनों में यत्र-तत्र काफी हो चुकी है । पाठक को अधूरा या खालीपन जैसा कुछ नहीं लगेगा। ____ मैंने पूज्य गुरुदेव के गंभीर विचारों को अधिक से अधिक प्रामाणिकता एवं सूबोधता के साथ रखने का प्रयत्न किया है। फिर भी छमस्थ व्यक्ति की एक सीमा है, अतः कहीं कुछ त्रुटि रह गई हो, तो तदर्थ क्षमाप्रार्थी हूँ। ___ अध्यात्म-रसिक जन इस पुस्तक से अधिकाधिक लाभ उठाएंगे, इसी आशा और विश्वास के साथ 'विरमामि । -विजयमुनि कलकत्ता अगस्त, १९६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 380