Book Title: Adhyatma Pravachana Part 1
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 6
________________ सम्पादक की कलम से आज का युग भौतिकवाद का है । मानव भौतिकवाद की दौड़ में अध्यात्मवाद को भुलाये जा रहा है । त्याग से भोग की ओर बढ़ रहा है । अपरिग्रह से परिग्रह की ओर झुक रहा है। यह अभियान उसे आरोहण की ओर नहीं, अवरोहण की ओर खींच रहा है। मानव उत्थान के शिखर पर नहीं, पतन की गहरी खाई में गिर रहा है । एक युग था जब भारत का चिन्तन अध्यात्मवाद से अनुप्राणित था । भारतीय दर्शन और चिन्तन की आत्मा अध्यात्मवाद से परिस्पन्दित होती रही थी। भारत के चिन्तन-सागर में अध्यात्म-वाद और आत्मविद्या की तरंगें लहरा रही थीं। अध्यात्म एवं आत्म-विद्या से अनुप्राणित ऊर्ध्वमुखी चिन्तन ने युग की चिन्तन धारा को मोड़ दिया था। भगवान महावीर के विराट ज्ञानालोक ने अध्यात्मवाद को नया स्वर दिया - 'जे एगं जाणई से सव्वं जाणइ' एक आत्मा को जानने वाला सब कुछ जान लेता है। 'आया सामाइए'-आत्मा ही सामायिक-समता का अधिष्ठान है, यही तप है, यही संयम है, यही ज्ञान है ।' आचारांग, स्थानांग, भगवती, ज्ञाता धर्मकथा, उत्तराध्ययन आदि आगमों में उनका गभीर अध्यात्म दर्शन बीजाक्षर की तरह आज भी अध्यात्म का विराट रूप लिए उपलब्ध है। अपने युग के वे महान अध्यात्मवादी ऋषि थे। उनके अध्यात्मदर्शन की प्रतिध्वनि भारतीय चिन्तन में गूंज उठी। जहाँ एक ओर वेदान्त ने अद्वैतवाद को जन्म दिया, तो वहीं दूसरी ओर बौद्ध चिन्तन ने विज्ञानाद्वैत एवं शून्यवाद के रूप में अध्यात्म को उजागर किया। ___ भगवान महावीर के आध्यात्मिक दर्शन को पल्लवित करने का सर्वाधिक श्रेय आचार्य कुन्दकुन्द को है । महावीर के अध्यात्म दर्शन की आत्मा का जो रूप आज निखरा हुमा मिलता है, वह आचाय कुन्द-कुन्द के विशुद्ध एवं सूक्ष्म अध्यात्म चिन्तन शिल्प का चमत्कार है । उनके चिन्तन की गरिमा से आज श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं का चिन्तन गौरवान्वित है, ऋणी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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