Book Title: Adhyatma Chandra Bhajanmala Author(s): Chandrakanta Deriya Publisher: Sonabai Jain Ganjbasauda View full book textPage 8
________________ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला *मंगलाचरण* हे आत्मा शुद्धात्मा परमात्मा, शत्-शत् नमन । हे ज्ञान और विज्ञानधारी, तुम्हें हो शत्-शत् नमन ।। १. निर्णय किया मैंने, स्वयं का ही स्वयं को हो नमन । सत् शील और सन्मार्ग दाता, आत्मा तुमको नमन ।। २. ज्ञानी तुम्हीं ध्यानी तुम्हीं. हो वीतरागी आत्मन् । धुव धाम में ही तुम विराजो, ज्ञानात्मन् तुमको नमन ।। ३. तुम्हीं सहज सुबोध हो, सत् मार्ग को जो चुन लिया। गुरूवर के ही उपदेश को, अपने में ही जो गुन लिया । ४. उन गुरू के चरणों में हो, शतबार वन्दन हो नमन । ज्ञान और विज्ञान दाता, तुम्हें हो शत् शत् नमन || वंदना तारण तरण हे गुरूवर, तुमको लाखों प्रणाम। तुमको लाखों प्रणाम। तुम हो आत्म तत्व के ज्ञाता, निर्विकल्प आतम के ध्याता । अक्षय सुख के धारी, तुमको लाखों प्रणाम ॥ तुमको लाखों प्रणाम.... २. तुम हो ज्ञान सिंधु के सागर, रत्नत्रय गुणों के हो आगर । सहजातम सुखकारी, तुमको लाखों प्रणाम। तुमको लाखों प्रणाम... ३. तुमने मोह महातम नाशा, तुमने सत्य स्वरूप प्रकाशा । ज्ञानानन्द स्वभावी, तुमको लाखों प्रणाम ॥ तुमको लाखों प्रणाम... ४. तुमने विषयों से मुँह मोडा, जग जीवन से नाता तोड़ा। शुद्ध बुद्धि के धारी, तुमको लाखों प्रणाम ॥ तुमको लाखों प्रणाम... ५. अजर अमर हो सिद्ध स्वरूपी, नन्द आनंद चेयानंद रूपी। शाश्वत पद के धारी,तुमको लाखों प्रणाम ॥ तुमको लाखों प्रणाम... जय तारण तरण तारण-तरण, तारण-तरण, तारण-तरण बोलिये । तारण-तरण बोल के, आनन्द रस को घोलिये ॥ १. ओंकार उवन पउ, नंद आनंद मउ । विन्यान विंद पउ, जिनय जिनेंद मउ॥ सत् चिदानंद में अमृत रस घोलिये...तारण-तरण.... आतम की महिमा का, सुर नर न पार पा सके। स्वात्म रसिया ही महिमा, को तेरी गा सके | स्वात्म चतुष्टय की महिमा अब तौलिये...तारण-तरण.... अलख निरंजन ये, आत्मा हमारी है। द्रव्य भाव नो कर्मों से ये न्यारी है ॥ यही तरण तारण जय तारण-तरण बोलिये...तारण-तरण.... | ४. आत्मा का निज वैभव दर्शन और ज्ञान है। निर्विकल्प अनुभव ही इसकी पहिचान है ॥ जाग जाओ चेतन चिर काल पर में सो लिये...तारण-तरण.... ५. उत्पाद व्यय धौव्य अनंत गुण की खान है। यही निर्विकल्प शुद्ध चेतन भगवान है ॥ स्वात्म रमण से अब अन्तर के द्वार खोलिए...तारण-तरण.... १. भजन - १ हे आतम पाऊँपद निर्वाण। ममल स्वभाव की करूँ साधना, विमल गुणों की खान॥ १. सिद्ध स्वरूप में लीन रहूँ नित, ज्ञान की ज्योति महान ॥ हे आतम.... आतम है सर्वज्ञ स्वभावी, ज्ञान की पुंज महान ॥ हे आतम.... पूर्णानन्द स्वभावी है यह, निज ध्रुवता पहिचान ।। हे आतम.... परमातम को निज में लखकर, होऊँ सिद्ध समान ।। हे आतम....Page Navigation
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