Book Title: Adhyatma Chandra Bhajanmala
Author(s): Chandrakanta Deriya
Publisher: Sonabai Jain Ganjbasauda

View full book text
Previous | Next

Page 59
________________ १०३ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला अध्यात्म चन्द्र भजनमाला १०४ १. २. भजन - १५० तर्ज - हम तो चले परदेश.... ज्ञान हमारा देश, हम तो ज्ञानी हो गये, छूट रहा अज्ञान, हम तो ज्ञानी हो गये। आतम मेरा देश, हम स्वदेशी हो गये, धार दिगम्बर भेष, हम स्वदेशी हो गये। १. हे आतम तेरी प्रीति निराली । पर भावों से है तू खाली ॥ धुव है मेरा भेष, हम धुव धामी हो गये, छूट रहा..... २. तू है अनन्त चतुष्ट यवाली । ज्ञान गुणों की अमृत प्याली ॥ ममल है मेरा वेश, ममलह ममल हो गये, छूट रहा..... ३. तीन लोक में महिमा न्यारी । अतीन्द्रिय आनन्द की धारी ॥ निज ध्रुवता को देख, निज की ध्रुवता पा गये, छूट रहा..... ४. चिदानन्द चेतन है अविकारी । परम पारिणामिक भाव का धारी ॥ शुद्ध है मेरा वेश, हम शुद्धातम हो गये, छूट रहा..... ५. स्वानुभूति ही परम सुखारी । सिद्ध स्वरूप की छवि है न्यारी ॥ ध्यान मेरा परिवेश, हम तो ध्यानी हो गये, छूट रहा..... ६. आतम तुम रत्नत्रय धारी । ज्ञान स्वभावी हो सुखकारी ॥ मुक्ति पुरी है देश, हम शिवगामी हो गये, छूट रहा..... प्रभाती - १५१ अब चेतन तुम क्यों बौराने, काहे मोह में फंसते हो। ऐजी काहे मोह में फंसते हो। बीत रही तेरी जिंदगानी, नरभव पा क्यों हंसते हो। ऐजी नरभव पा क्यों हंसते हो। यह जीवन पानी का बुदबुदा, क्षण में जाने वाला है। ऐजी क्षण में जाने वाला है। मद मिथ्यात्व कषायें बीती, राग द्वेष को हरना है। ऐजी राग द्वेष को हरना है। ममल स्वभाव है सत्य सनातन, मुक्ति श्री को वरना है। ऐजी मुक्ति श्री को वरना है। विषय भोग से तज तू ममता, आवागमन से डरना है। ऐजी आवागमन से डरना है। चारों गतियों में दुःख भोगे, पग पग मरना जीना है। ऐजी पग पग मरना जीना है। ध्यान लगा ले अब आतम का, ध्रुव की अलख जगाना है। ऐजी ध्रुव की अलख जगाना है। तन में रहता है इक आतम, इसका नाम सुमरना है। ऐजी इसका नाम सुमरना है। समता का तू नित प्याला पी, इस जग से अब डरना है। ऐजी इस जग से अब डरना है। ★★★ अध्यात्म साधना का मार्गस्वाध्याय, सत्संग, संयम, ज्ञान, ध्यान है। ध्यान की अवस्था में शरीर अत्यन्त भारहीन मन सूक्ष्म और श्वास-प्रश्वास अलक्षित प्रतीत होती है। साधक ध्यान का अभ्यास करने से दैनिक जीवनचर्या में मोह से विमुक्त हो जाता है और ज्यों-ज्यों वह मोह से विमुक्त होता है त्यों-त्यों उसे ध्यान में सफलता मिलती है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73