Book Title: Adhyatma Chandra Bhajanmala
Author(s): Chandrakanta Deriya
Publisher: Sonabai Jain Ganjbasauda

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Page 60
________________ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला अध्यात्म चन्द्र भजनमाला १०६ प्रभाती - १५२ ध्रुव शुद्धात्मा निहार मेरे भाई। यही निज ज्ञान ध्यान में करे सहाई॥ धर्म की महिमा अपार, अनन्त गुण का भंडार । संयम तप से, अब लौ लगाई...ध्रुव... आतम निज रस में, निज परमातम चीन्ह। राग द्वेष छोड़, चैतन्य में समाई...ध्रुव... ज्ञाता दृष्टा है आत्म, चेतन सृष्टा है आत्म। अनुपम अमूल्य, निराला मेरे भाई...ध्रुव... यह जग है दंद फंद, आतम अतुल अखंड। आतम की महिमा, स्वानुभूति में समाई...ध्रुव... प्रभाती - १५४ सिरोहं सिद्घोहं सिद्धोहं जपना। शुद्धात्मा के सिवा कोई न अपना॥ १. भवदधि गहरी अपार, आतम ही खेवनहार । आतम ही पूर्ण करे, शिव सुख का सपना...सिद्धोहं... २. आतम में ही आनन्द, आतम ही परमानन्द । आतम ही चिदानंद, सहजानंद में रहना...सिद्धोहं... ३. ज्ञान की है दिव्य धार, करती है जग से पार । अरस अरूपी, निज आत्मा को भजना...सिद्धोहं... ४. आतम है निर्विकार, अनन्त गुण का भंडार । ममल स्वभाव की, अनुभूति करना...सिद्धोहं... आतम दृगज्ञान धारी, अक्षय सुख का भंडारी। त्रिरत्नमयी शिवनगरी को वरना...सिद्धोहं... प्रभाती - १५३ राग द्वेष मिथ्या के, बादल घनेरे । आतम श्रद्धान करो, छूटें दु:ख तेरे ॥ १. चिदानन्द चेतन, चिंतामणी को ले रे । रत्नत्रय की निधान, मुक्ति को दे रे... २. आतम है अजर अविनाशी, गुण केरे। आतम को ध्याय मिटे, चौरासी फेरे... ३. शुद्ध बुद्ध सुख समृद्ध, निज गुण के चेरे । अनुपम अखंड अतुल, गुण निधि को ले रे... ४. दिव्य ज्योति प्रगट हुई, ज्ञान के उजेरे । ज्ञान की है दिव्य धार, दृढ़ता से ले रे... प्रभाती - १५५ ज्ञान का प्रकाश हुआ, दिव्य ज्योति खोलिये। अमर हुई स्वानुभूति, रस को तू घोलिये ॥ १. पुद्गल जग दंद फंद, आतम गुणों का पिंड । अवगाहन कर उसी में, रत हो डोलिये...ज्ञान... २. ज्ञान पुंज चेतन, प्रकाश पुंज चेतन । आतम सत् चिदानन्द, इसको ही टटोलिये...ज्ञान... ३. परमात्मा को जान, करी है निज में पिछान । त्रिरत्नमयी आतम के द्वार खोलिये...ज्ञान... जाग्रत अवस्था में ध्यान अन्तरंग का एक गहन सुख होता है, जो अनिर्वचनीय है। ध्यान कोई तन्त्र - मन्त्र नहीं है। ध्यान एक साधना है जिसके द्वारा हम अपने भीतर आत्मानन्द उपजाते हैं। पर का विचार करना ही बुद्धि का दुरूपयोग है, इससे ही भय - चिन्ता - आकुलता घबराहट होती है। बुद्धि का सदुपयोग करके हम वर्तमान जीवन सुख शांति आनंदमय बना सकते हैं और भविष्य में सद्गति मुक्ति पा सकते हैं।

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