Book Title: Adhyatma Chandra Bhajanmala
Author(s): Chandrakanta Deriya
Publisher: Sonabai Jain Ganjbasauda

View full book text
Previous | Next

Page 43
________________ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला अध्यात्म चन्द्र भजनमाला भजन - १०९ तर्ज - बाबुल का ये घर बहना.... ज्ञानानन्द जी का, हुआ दर्श ये सुहाना है। वैराग्य धार लिया, पहना समता का बाना है। बरेली नगरी में, देखो आनन्द छाया है। धन्य हुई नगरी, मोती सा ज्ञान पाया है ॥ मथुरा देवी लाल हुआ, उत्सव सा नजराना है...ज्ञानानंद जी.. २. पूष सुदी दसमी को, ज्ञानानन्द जी का जन्म हुआ। पिता चुन्नीलाल जी की, बगिया में गुलाब खिला || गुलाब के खिलते ही, मिला ज्ञान का खजाना है...ज्ञानानंद जी... ३. होश सम्हाला जब, ज्ञानानन्द नाम पाया। अध्यात्म नगरी में, शुद्धात्म ज्ञान पाया ॥ रत्नत्रयी आतम का, हमें ध्यान लगाना है...ज्ञानानंद जी.. ४. अन्तर से आतम में, इक ज्ञान किरण जागी। राग द्वेष ममता, शल्ये तब सब भागी ॥ आत्म ज्योति प्रगटा के, शिव नगरी जाना है...ज्ञानानंद जी.. ५. गुरू आशीष सदा, मिले अर्ज हमारी है। संसार चक्रों से, अब हम भी हारी हैं ॥ शुद्ध ज्ञान मगन होके, तारण तरण बन जाना है...ज्ञानानंद जी... भजन-११० आतम आतम जपोगे तो शिवपुर जाओगे। शिवपुर जाओगे आतम में समा जाओगे | १. ज्ञान तेरा गुण है, अमर तेरी आतम। अमर तेरी आतम, सुख धारी तेरी आतम...आतम... २. शान्ति तेरी तुझमें, नि:शल्य तेरी आतम। निःशल्य तेरी आतम, ज्ञानधारी तेरी आतम...आतम... ३. निष्क्रिय तू है, त्रिकाली तेरी आतम। त्रिकाली तेरी आतम, निराली तेरी आतम...आतम... ४. अरस अरूपी, अविनाशी तेरी आतम। अविनाशी तेरी आतम, अनुपम है तेरी आतम...आतम... ५. एक अखंड ज्ञाता दृष्टा तेरी आतम। ज्ञाता दृष्टा तेरी आतम, चेतन दृष्टा तेरी आतम...आतम... भजन - १११ यह शांत स्वरूप निजातम है,शाश्वत सख को ये पायेगी। ध्रुव शुद्धातम की सत्ता है, लख शून्य विन्दु हो जायेगी। १. ध्रुव में ही वास सदा होगा, अविनाशी सुख जहां होगा। अपने ही गुप्त गुफा में वश, ये अजर अमर पद ध्यायेगी...यह... | २. चैतन्य सबेरा भी निज में, शुद्ध ज्ञान बसेरा भी निजमें। अंतस्तल में आराधन कर, दैदीप्यमान हो जायेगी...यह... ३. चैतन्य पुंज निज आतम की, सत्ता अखंड निराली है। अनुपम अमृतमय ज्ञान स्रोत पी, ममल हो शिवपुर जायेगी...यह... ४. ये परम तृप्त आनन्द दशा, स्वानुभूति धारी है। सिद्धोहं सिद्धोहं जपके, सिद्धोहं ही हो जायेगी...यह... ५. कर्ता भी नहीं न भोक्ता है, निस्पृह आकिंचन धारी है। यह ज्योति पुंज निज आतम ही, परमात्ममयी हो जायेगी...यह... *मुक्तक* ज्ञान की गंगा बहाये, आप जो इधर से निकले । आतम हित के काज, आप जो घर से निकले ।। धन्य हमारे भाग्य,त्रिभंगी सार सुनाये । परिणामों को सम्हाल, ज्ञान के दीप जलाये ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73