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अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
भजन- १२३ तर्ज-दिन आयो दिन आयो.... दर्श पायो दर्श पायो दर्श पायो।
मैंने शुद्धातम को दर्शपायो॥ १. अजर अमर अविनाशी पद भाये ।
आतम तेरी महिमा के गुण गाये ॥ मन डोले मन डोले मन डोले । प्यारी आतम में मेरा मन डोले...दर्श... २. आत्म बगीचे में ज्ञान गुण महके ।
आत्मा गुणों में, मगन होके चहके ॥ हर्ष होवे हर्ष होवे हर्ष होवे । निज आत्मा में ही हर्ष होवे...दर्श... ३. विषय कषायों से जिया घबड़ावे ।
स्वानुभूति ही, मन को भावे ॥ ज्ञान पायो ज्ञान पायो ज्ञान पायो । मैंने निज आतम से ज्ञान पायो...दर्श... ४. आतम मेरी सिद्ध स्वरूपी ।
चैतन्य ज्योति अरस अरूपी ॥ लीन हुआ लीन हुआ लीन हुआ । प्यारी आतम में अब लीन हुआ...दर्श... ५. रत्नत्रय को उर में सजाये ।
अनन्त चतुष्टय के बजें बधाये ॥ अनुपम है अनुपम है अनुपम है ।
महिमा आतम की अनुपम है...दर्श... ६. आनन्द से ज्ञान झरोखे में बैठो ।
परमानन्द मयी, सत्ता को लेखो ॥ ज्ञाता दृष्टा ज्ञाता दृष्टा ज्ञाता दृष्टा । मेरा चेतन, निज में ज्ञाता दृष्टा...दर्श...
भजन - १२४ तर्ज- परदेशियों से न अंखियां मिलाना.... निज आत्मा की तू ज्योति जलाना,शुद्धात्मा का लक्ष्य सुहाना॥
निज आतम की अनुभूति में, डूब रहे नित स्वानुभूति में। परमात्म पद का ध्यान लगाना, निज आत्मा की तू ज्योति जलाना॥
ज्योति जलाना स्वानुभूति में समाना...निज आत्मा.. अनन्त गुणों का धारी चेतन, पुद्गल सारा जड़ और अचेतन । स्व-पर का निर्णय हो जाना,निज आत्मा की तू ज्योति जलाना ॥
ज्योति जलाना, श्रद्धा उर में लाना...निज आत्मा... ममल स्वभावी आतम मेरी है, यह शाश्वत सुख की ढेरी । अक्षय सुख का है ये खजाना, निज आत्मा की तू ज्योति जलाना ।।
ज्योति जलाना, शिव सत्ता को पाना...निज आत्मा... वीतराग परमानन्द मयी है, तीन लोक का नाथ यही है । सिद्ध स्वरूप है इसका बाना, निज आत्मा की तू ज्योति जलाना ॥
ज्योति जलाना, स्वानुभूति में समाना...निज आत्मा.
भजन - १२५ आतम निहार अब देर न कर तू प्यारे।
स्व-पर कर पहिचान सदा ये न्यारे॥ १. आतम ही गुणों की खानि, ज्ञान की गरिमा।
करें किस विधि हम गुणगान आत्म की महिमा...आतम... २. आतम की करें सम्हाल,सुखी हो जावे। रत्नत्रय को हम धार, मोक्ष हम पावें...आतम... ३. मत जला क्रोध की अग्नि, हृदय में अपने। ज्ञान नीर से इसको सींच, ज्वलन से बचने...आतम... ४. नरतन पाया अब, आतम हित को कर ले। ममल भाव में गोते लगा, मुक्ति तू वरले...आतम... ५. शुद्धातम देव की महिमा, कही न जाये।
सत्ता इक शून्य विंद में, समा ही जाये...आतम... ६. चेतन चिंतामणी, आतम पै बलि जाऊँ। ___ मैं ध्यान खड़ग को खींच, कर्मों को नशाऊँ...आतम...