Book Title: Adhyatma Chandra Bhajanmala
Author(s): Chandrakanta Deriya
Publisher: Sonabai Jain Ganjbasauda

View full book text
Previous | Next

Page 56
________________ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला अध्यात्म चन्द्र भजनमाला R. भजन - १४२ सहजातम निर्विकारी हो आतम, सहजातम निर्विकारी। परमानन्द बिहारी हो आतम, परमानन्द बिहारी॥ क्रिया कांड से कुछ नहिं होने, वाद विवाद समय नहिं खोने। राग की हो मारा मारी हो आतम, राग की हो मारा मारी || सहजातम.... विषय कषायों की महिमा छूटी, शल्य शंक की न बोले तृती। त्रय मूढतायें भी हारी हो चेतन, त्रय मूढ़तायें भी हारी ॥ सहजातम.... त्रिकाली चिदानन्द शुद्धात्मा है,सिद्ध स्वरूपी परमात्मा है। शिव सुख का है धारी हो आतम, शिव सुख का है धारी ॥ सहजातम.... ज्ञान मार्ग के साधक निराले, शुद्ध स्वभाव पै दृष्टि डाले। रत्नत्रय शुचि धारी हो आतम, रत्नत्रय शुचि धारी ॥ सहजातम.... धर्म का सत्य स्वरूप स्वीकारा, ज्ञान सूर्य है सब से न्यारा। अतीन्द्रिय आनन्द का धारी हो आतम, अतीन्द्रिय आनन्द का धारी ॥ सहजातम.... भव भ्रमण का अंत आ गया, तारण तरण ये पंथ भा गया। क्रमबद्ध को स्वीकारी हो आतम, क्रमबद्ध को स्वीकारी || सहजातम.... ४. भजन - १४३ तर्ज - तुम अगर साथ देने... प्रीत आतम से मेरी रहेगी सदा, नाता पुद्गल से जोडूं तो क्या फायदा। ज्ञान का तूने दरिया बहाया सदा, नेह जग से लगाऊँ तो क्या फायदा॥ १. निज आतम की शरणा में मैं नित रहूँ, राग के भाव आयें तो क्या फायदा । नित्य पूजन करूँ, नित्य अर्चन करूँ, उनके गुण को मैं गाऊँ तो क्या फायदा ॥ ज्ञान का तूने दरिया बहाया सदा, नेह आतम से लगाऊँ तो यही फायदा.... २. शील संयम धरूँ, स्वात्म मगन रहँ, आत्म अनुपम अमोलक रहेगी सदा । रत्नत्रय को धरूँ , निज को मैं लखू, ज्ञानामृत का मैं प्याला पियूँगी सदा ॥ तू अनन्त चतुष्टय का धारी प्रभु, स्व के वैभव को देखे यही फायदा... ३. शुद्ध आतम लखू, ज्ञान निज का चलूँ, रत्नत्रय के ये बाजे बजेंगे सदा । ध्यान आतम धरूँ, शुद्धातम में रहूँ, कमल ममल स्वभावी रहूँगी सदा ॥ तुझसे जैसे बने, तैसे सत् मान ले, भ्रम भ्रान्ति मिटेगी यही फायदा... मुक्तक कंचन कामिनी कीर्ति को क्या हम अब अपना मानेंगे। माया मिथ्या निगोद में फंस करके क्या निगोद में जायेंगे। ये शरीरादि कुछ मेरे नहीं, इनसे हम नाता तोड़ेंगे। निज वैभव को लख करके हम, आतम से नाता जोड़ेंगे। ५. ★ मुक्तक अजर अमर आत्म को भजते ही रहेंगे। वीतरागता में सदा आनन्द करेंगे। 2 ममल स्वभावी हमें बनना ही पड़ेगा। परमात्म पद को प्राप्त अब करना ही पड़ेगा।

Loading...

Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73