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अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
भजन - ११४
तर्ज - तूने जानो न धर्म को.... मेरी आतम है अनुपम अनमोल,ज्ञायक है ज्ञान गुण से भरी॥ १. मेरी आतम अरस अरूपी, अविकारी है चेतन ।
यह पुद्गल जड़ नाशवान है, रूपी और अचेतन ॥
इस जग का नहीं है कोई मोल, ज्ञायक है ज्ञान गुण से भरी.. २. अतीन्द्रिय आनन्द धारी आतम, अपने में विलसाय ।
परमामृत की धारी आतम, अपने में रम जायें ॥
निज वैभव का हुआ है अब मोल,ज्ञायक है ज्ञान गुण से भरी... ३. मेरी आतम सिद्ध स्वरूपी, निज को जानन हारी।
ममल स्वभावी मेरी आतम, युग युग से बलिहारी ॥
ज्ञान गुण का हुआ है तोल-मोल, ज्ञायक है ज्ञान गुण से भरी... ४. ज्ञानी चेतन ज्ञान कुंड में, नित प्रति गोते खावे ।
मलिन भाव और समल कर्म तब, पल में क्षय हो जावे ॥ मैं हूँ अरस अरूपी अनमोल, ज्ञायक है ज्ञान गुण से भरी...
भजन - ११५
तर्ज- मेरे ख्वाजा का मेला आया रे... मैंने मन्दिर में दर्शन को पाया रे, निज घर में चैतन्य को पाया रे॥ १. आतम को पाया मैंने निज में लखाया रे।
निज घर में आतम को पाया रे... २. आतम को पाया, आनन्द समाया रे।
ध्यान करने का, शुभ अवसर आया रे... ३. ज्ञान भी पाया, चारित्र भी पाया रे।
रत्नत्रय, गले लगाया रे... ४. दर्शन को पाया, स्वानुभूति को पाया रे।।
__मैं तो निज पद में, हुलसाया रे... ५. मेरा चेतन, आनन्द का प्याला रे।
आनन्द का प्याला, वह ध्रुव का उजाला रे... ६. ज्ञान गंगा में, गोते लगाया रे।
मैंने मन्दिर में, दर्शन को पाया रे...
भजन - ११६ तर्ज - मेरे ख्वाजा का मेला आया रे... मेरी आतम, निज में समाई है। निज में समाई,अन्तर में लखाई है।
निज आतम ने, गुण प्रगटाई है ॥ १.गुण प्रगटाई, निज अलख जगाई है।
आत्म महिमा, अकथ सुखदाई है ॥ निज ज्ञान ज्योति, प्रगटाई है...मेरी.... २. मेरी आतम ममल स्वभावी है ।
ममल स्वभावी वह तो, दिव्य प्रकाशी है ॥
परमातम से नेह लगाई है...मेरी.... ३. नेह लगाया, शुद्धात्म दिखाई है । मेरी आतम, ज्ञान प्रकाशी है ॥
मेरी आतम, अजर अविनाशी है...मेरी.... ४. अजर अविनाशी, वह तो शिवपुर वासी है।
परमातम में, मन को लगाया है ॥ सिद्ध स्वरूप ही, मन को भाया है...मेरी....
*मुक्तक
बसन्त की बहारें लायेंगे हम । ज्ञान की निधि को पायेंगे हम ॥ अब अन्त:करण में इक ज्योति जगी है। कर्मों के दल से निकल जायेंगे हम ॥
निज आतम को पाने को जी चाहता है। उसी में समाने को जी चाहता है ॥ ज्ञान दर्शन का टकसाल आतम हमारा। उसी में खो जाने को जी चाहता है ॥