Book Title: Adhyatma Chandra Bhajanmala
Author(s): Chandrakanta Deriya
Publisher: Sonabai Jain Ganjbasauda

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Page 44
________________ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला अध्यात्म चन्द्र भजनमाला गारी- ११२ चेतन बात तुम करियो स्वाभिमान की। ज्योति पुंज अमर ज्ञान की। १. ईश्वर ब्रह्म स्वरूप है मेरा, ज्ञान उदय से हुआ सबेरा। अब निज में चलने की बेरा, जग जंजाल नहीं है तेरा॥ आतम चेतन मयी है सुखधाम की, ज्योति पुंज अमर ज्ञान की.... २. ध्रुव स्वभाव है सिद्ध स्वरूपी, कर्म वर्गणा पुद्गलरूपी। अजर अमर है ब्रह्म स्वरूपी, है अविनाशी अरस अरूपी ।। दृष्टि धरियो तुम अपने धुव धाम की, ज्योति पुंज अमर ज्ञान की... ३. राग द्वेष का करो निवारण, आतम तेरा सुख का कारण । मोह मिथ्या का करो विदारण, कहते हैं यह सद्गुरू तारण || स्वानुभूति में रहियो शिवधाम की, ज्योति पुंज अमर ज्ञान की.... ४. शुद्धातम की करो साधना, हो रत्नत्रयमयी भावना । कर्मों की बेड़ी कट जाना, फिर जग में तुमको नहीं आना ॥ ओंकार स्वरूप निजधाम की, ज्योति पुंज अमर ज्ञान की.... ५. ज्ञान स्वभाव में गोते लगाऊँ. ममल स्वभाव में बह-बह जाऊँ। सरल शांत हो निज में आऊँ, शुद्धातम से ब्याह रचाऊं ॥ शील चुनरी में ओढूँ आनन्द धाम की, ज्योति पुंज अमर ज्ञान की.... गारी- ११३ सुनो आत्म की महिमा चेतन, दिव्य गुणों की खान मोरे लाल। अजर अविनाशी शिवपुरवासी, परमानन्द विलासी मोरेलाल ॥ १. अनुपम और निराली चेतन, ज्ञानानन्द दृगवासी मोरे लाल । अमर आत्म की महिमा सुन लो, है चैतन्य की मूरति मोरे लाल ॥ २. शुद्ध गुणों की ढेरी आतम, परमानन्द विलासी मोरे लाल । रत्नत्रय से हुई अलंकृत, निज आतम की मूरति मोरे लाल || ३. दीपशिखा सी धारी आतम, त्रिभुवन में है व्यापी मोरे लाल । ज्ञान दर्शन और सत्य की धारी, सहजानन्द बिहारी मोरे लाल ॥ ४. अरस अरूपी मेरी आतम, स्वानुभूति उर धारी मोरे लाल । आतम मेरी सिद्ध स्वरूपी, केवल ज्ञान की धारी मोरे लाल || ५. मोह मिथ्या की त्यागी आतम, स्वरूपानंद बिहारी मोरे लाल । आतम सुख और शान्ति प्रदाता, सुख सत्ता को पाये मोरे लाल ॥ अनन्त चतुष्टय धारी आतम, परमातम पद पाये मोरे लाल । अलख निरंजन मेरी आतम, शिव नगरी की वासी मोरे लाल | चन्द्र आत्म से अरज करत है, आत्म आत्म में रमाये मोरे लाल ॥ *मुक्तक* ग्रन्थ चौदह का अमर पाठ हुआ भारी है। तारण की दिव्य ज्योति पै बलिहारी है ॥ जिसके सिद्धांत को सुन आत्म ज्ञान जगता है। त्रिकाली आत्म का श्रद्धान अब तो बढ़ता है। *मुक्तक सेमरखेड़ी बना ज्ञान का दरिया । ज्ञान में गोते लगाओ टूटे मिथ्या लड़ियां ॥ आत्म समन्दर गोते लगाते जायेंगे हम । आत्म शुद्धात्म परमात्ममयी बन जायेंगे हम ॥ चौदह ग्रन्थों को जब देखें, भेद विज्ञान की आँखें। निराकुल शांत रस का पान करती ज्ञान की आँखें । आत्म वैभव के दरिया में तैरती अंतर की आँखें । स्वानुभूति में रहना है, खुली जब ज्ञान की आँखें ॥ निज ज्ञान ही आनन्द का भंडार है चेतन । आनन्द ही आनन्द से परिपूर्ण है चेतन ॥ जाना नहीं देखा नहीं निज ज्ञान में चेतन । यह शुद्ध श्रद्धा ज्ञान का टकसाल है चेतन ।

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