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अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
भजन -८२ तर्ज - तरण तारण पतित पावन... मेरी आतम जगत के.पर पदार्थों से अछती है। मोह और राग को छोड़ो, ये दुनियां कितनी झूठी है। १. धन दौलत कुटुम्ब कबीला, ये सब स्वारथ के रिश्ते हैं।
ये जानन हार आतम में, सम्यक् के बीज डलते हैं...मेरी.... २. माया मिथ्या को छोड़ो तुम, निजातम रूप को ध्याओ।
मैं चेतन हूँ अमूरति हूँ, चिदानंद गीत अब गाओ...मेरी.... ३. कर्म नो कर्म मन वच काय, ये कुछ भी नहीं मेरे ।
सत् चिदानंद परमेश्वर, नित्यानंद रूप है मेरे...मेरी.... ४. अनादिकाल से घूमा, चतुर्गति के झमेले में। विभावों का दमन करके, आओ निज ज्ञान मेले में...मेरी.... ५. अहो शुद्धोपयोगी एक, आतम को ही ध्यावत हैं। उसी में लीन रहते हैं, अनाकुल शान्ति चाहत हैं...मेरी...
भजन -८४ दर्शन दो शुद्धात्म देव, मेरी अखियाँ प्यासी रे ।
दर्शन दो निज आत्म देव, तू तिमिर विनाशी रे ॥ १. चारों गति में भटक रहा था, विषय भोगों में अटक रहा था।
निज आतम के दर्शन को, मेरी अखियाँ प्यासी रे...दर्शन दो... २. वसु कर्मों से तुम हो न्यारे, अनन्त चतुष्टय को धारे।
त्रय रत्नत्रय के धारी देव, मेरी अखियाँ प्यासी रे...दर्शन दो... ३. परिपूर्ण ज्ञानमय अविनाशी, सत चिदानंद शिवपुर वासी।
ममल स्वभावी है आत्म देव, मेरी अखियाँ प्यासी रे...दर्शन दो... ४. मिथ्यात्व भाव को तुम छोड़ो, सम्यक्त्व से नाता तुम जोड़ो।
ज्ञाता दृष्टा है आत्म देव, मेरी अखियाँ प्यासी रे...दर्शन दो...
भजन -८३ तर्ज-अपने पिया की मैं तो...
अपने आतम की मैं तो बनी रे दीवानी। मिली है आतम मेरी,गुण की निधानी, मैं तो भई रे दीवानी॥ १. ज्ञाता दृष्टा मेरी आतम, सनो मेरे जिनराज जी। अद्भुत और निराली आतम, अलख निरंजन ज्ञान की।
अपने आतम.... २. इस शरीर से भिन्न सदा है, अपना आतम राम जी । नरक स्वर्ग पशुगति के दु:ख से, भिन्न है आतमराम जी ।
अपने आतम.... ३. आतम शुद्ध बुद्धि की धारी, सुन लो ज्ञान स्वरूप जी। तन्मय हो जा इस आतम में, दृढ़ हो चेतन राम जी ।।
अपने आतम....
भजन -८५ तर्ज-बहुत प्यार करते हैं.... गुरूवर आए हम तेरी शरण ।
तेरी भक्ति में बीतेजनम-जनम॥ विषयों के लंगर को तुमने है तोड़ा। क्रोध कषायों से मुंह को है मोड़ा ॥ मिथ्या शल्यों को, अब छोड़ें हम ।
गुरूवर आए हम तेरी शरण... २. शुद्धातम का ध्यान हम धरेंगे ।
अक्षय सुख का पान हम करेंगे ॥ रत्नत्रय का ध्यान करें हम । गुरूवर आए हम तेरी शरण... ज्ञान की गंगा में, हम डूब जायें । ममल स्वभाव का दरिया बहाएँ ॥ आतम अनुभूति में मगन रहें हम । गुरूवर आए हम तेरी शरण...