Book Title: Adhyatma Chandra Bhajanmala
Author(s): Chandrakanta Deriya
Publisher: Sonabai Jain Ganjbasauda

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Page 36
________________ ५७ १. ३. ४. भजन - ८६ तर्ज- मैं चढ़ाऊंगा दाने अनार के मेरे बाबा... राग द्वेष मैं छोडूं विचार के, मेरी आतम के दिन बहार के ॥ २. निज आतम को जब तू पाएगा, निज आतम को जब तू पाएगा। निज आतम को जब तू पाएगा, आतम सिद्धातम बन जाएगा । श्रद्धा धारो चेतन की सम्हाल के... मेरी आतम..... अध्यात्म चन्द्र भजनमाला नर जन्म को जब तू पायेगा, नर जन्म को जब तू पायेगा । नर जन्म को जब तू पायेगा, चैतन्य में तू समा जायेगा ॥ ध्यान करले चेतन का विचार करके... मेरी आतम.... रत्नत्रय को तू पायेगा, रत्नत्रय को तू पायेगा । रत्नत्रय को तू पायेगा, सप्त भयों से मुक्त हो जायेगा || शल्यों को हृदय से निकाल के... मेरी आतम...... ५. ज्ञाता दृष्टा तू मन को भायेगा, ज्ञाता दृष्टा तू मन को भायेगा। ज्ञाता दृष्टा तू मन को भायेगा, चेतन दृष्टा हो जायेगा | ज्ञान की ज्योति रखना सम्हाल के, मेरी आतम..... भजन- ८७ तर्ज बन्नो तेरी अंखियाँ.... धरो हृदय में समता प्राणी, आये तेरे दर पे माँ जिनवाणी ॥ १. मैया तेरी वाणी लाख की है। रसास्वादन कर भव्य प्राणी...धरो हृदय.... २. माता तूने हमको सीख दी है। कषायें छोड़ी भव्य प्राणी... धरो हृदय .... सुनो अब विनती मेरी मैया । ३. तेरी शरणा हमको सुखदानी...धरो हृदय... ४. मैया मेरी आतम ज्ञाता दृष्टा । शुद्धतम है ये गुण की खानी... धरो हृदय... विषय भोगों को माँ मैं त्यागूं । स्वानुभूति की मैं रजधानी... धरो हृदय .... अध्यात्म चन्द्र भजनमाला १. २. ३. ४. भजन - ८८ कहाँ से आये हो ओ चेतन और कहाँ को जाते हो। तन धन यौवन कुछ थिर नहीं, इसमें क्यों भरमाते हो ॥ खोटी गतियों से निकले हो, अब आतम का हित कर लो। ज्ञान की ज्योति जगाओ अपनी, धर्म का अब सुमरण कर लो ॥ पर में भटकत बहु दिन बीते, अब अपने में खो जाओ। अब सुलटन की आयी बिरिया, अब अपने में आ जाओ ॥ राग द्वेष को छोड़ो अब तुम, समता रस का पान करो । विषय कषायों को छोड़ो, तुम आनंदामृत का पान करो ।। चन्द्र ये जग है रैन का सपना, अब आतम को तुम नित भजना । रत्नत्रय की डोर से बंधकर, अपनी मंजिल खुद तय करना ॥ भजन - ८९ तर्ज- तू ज्ञानानंद स्वभावी है तेरा.... १. मेरी अजर अमर आतम, गुणों की खान ये परमातम ॥ धर्म की राह पै चल सकते हैं, ये संसार असार । आतम अनुभव से होवेगा, जग से बेड़ा पार ॥ कर ध्यान निजातम का, और हो जाये शुद्धातम । मेरी अजर अमर आतम, गुणों की खान... २. ३. . देख ले अपने निज वैभव को दर्शन ज्ञान क्षमा । चल हो स्वयं में लीन, अब तू सुखमय धर्म तू कमा ॥ एकाग्र हो आतम में, और बन जाये परमातम । मेरी अजर अमर आतम, गुणों की खान... द्वादशांगमय है जिनवाणी, नमूँ त्रियोग सम्हार । जिनवाणी की करूँ वन्दना करती भव से पार ॥ चेतन चिदानंद तुम, और हो जाओ सहजातम । मेरी अजर अमर आतम, गुणों की खान... ५८

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