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भजन - ८६
तर्ज- मैं चढ़ाऊंगा दाने अनार के मेरे बाबा...
राग द्वेष मैं छोडूं विचार के, मेरी आतम के दिन बहार के ॥
२. निज आतम को जब तू पाएगा, निज आतम को जब तू पाएगा।
निज आतम को जब तू पाएगा, आतम सिद्धातम बन जाएगा ।
श्रद्धा धारो चेतन की सम्हाल के... मेरी आतम.....
अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
नर जन्म को जब तू पायेगा, नर जन्म को जब तू पायेगा । नर जन्म को जब तू पायेगा, चैतन्य में तू समा जायेगा ॥ ध्यान करले चेतन का विचार करके... मेरी आतम....
रत्नत्रय को तू पायेगा, रत्नत्रय को तू पायेगा ।
रत्नत्रय को तू पायेगा, सप्त भयों से मुक्त हो जायेगा ||
शल्यों को हृदय से निकाल के... मेरी आतम......
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ज्ञाता दृष्टा तू मन को भायेगा, ज्ञाता दृष्टा तू मन को भायेगा। ज्ञाता दृष्टा तू मन को भायेगा, चेतन दृष्टा हो जायेगा |
ज्ञान की ज्योति रखना सम्हाल के, मेरी आतम.....
भजन- ८७
तर्ज
बन्नो तेरी अंखियाँ....
धरो हृदय में समता प्राणी, आये तेरे दर पे माँ जिनवाणी ॥
१. मैया तेरी वाणी लाख की है।
रसास्वादन कर भव्य प्राणी...धरो हृदय....
२.
माता तूने हमको सीख दी है।
कषायें छोड़ी भव्य प्राणी... धरो हृदय .... सुनो अब विनती मेरी मैया ।
३.
तेरी शरणा हमको सुखदानी...धरो हृदय...
४.
मैया मेरी आतम ज्ञाता दृष्टा ।
शुद्धतम है ये गुण की खानी... धरो हृदय...
विषय भोगों को माँ मैं त्यागूं ।
स्वानुभूति की मैं रजधानी... धरो हृदय ....
अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
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भजन - ८८
कहाँ से आये हो ओ चेतन और कहाँ को जाते हो।
तन धन यौवन कुछ थिर नहीं, इसमें क्यों भरमाते हो ॥
खोटी गतियों से निकले हो, अब आतम का हित कर लो। ज्ञान की ज्योति जगाओ अपनी, धर्म का अब सुमरण कर लो ॥
पर में भटकत बहु दिन बीते, अब अपने में खो जाओ। अब सुलटन की आयी बिरिया, अब अपने में आ जाओ ॥
राग द्वेष को छोड़ो अब तुम, समता रस का पान करो । विषय कषायों को छोड़ो, तुम आनंदामृत का पान करो ।।
चन्द्र ये जग है रैन का सपना, अब आतम को तुम नित भजना । रत्नत्रय की डोर से बंधकर, अपनी मंजिल खुद तय करना ॥
भजन - ८९
तर्ज- तू ज्ञानानंद स्वभावी है तेरा....
१.
मेरी अजर अमर आतम, गुणों की खान ये परमातम ॥ धर्म की राह पै चल सकते हैं, ये संसार असार । आतम अनुभव से होवेगा, जग से बेड़ा पार ॥ कर ध्यान निजातम का, और हो जाये शुद्धातम । मेरी अजर अमर आतम, गुणों की खान...
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देख ले अपने निज वैभव को दर्शन ज्ञान क्षमा । चल हो स्वयं में लीन, अब तू सुखमय धर्म तू कमा ॥ एकाग्र हो आतम में, और बन जाये परमातम । मेरी अजर अमर आतम, गुणों की खान... द्वादशांगमय है जिनवाणी, नमूँ त्रियोग सम्हार । जिनवाणी की करूँ वन्दना करती भव से पार ॥ चेतन चिदानंद तुम, और हो जाओ सहजातम । मेरी अजर अमर आतम, गुणों की खान...
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