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भजन - ९८
तर्ज
तुमसे लागी लगन....
आये चेतन शरण, मेटो जन्म मरण, द्वंद सारे ।
आये चेतन तेरे द्वारे ।
१. ममल आतम को जाना है इसने इसकी ध्रुवता को माना है इसने ॥ ज्ञाता दृष्टा आतम, उवन जिन है आतम, नंद प्यारे... आये..... २. अतीन्द्रिय आतम को पाऊँ, स्वानुभूति में आन समाऊँ ॥ समता को मैं धारुँ, रत्नत्रय को पालूँ, ज्ञान धारे... आये..... ३. अनादि से भव वन में भटका, संसार महावन में अटका ॥ महिमा आतम गाऊँ, शुद्धातम को ध्याऊँ, सत्य धारे... आये... ४. निज आतम को अब तू निहारे, शुद्ध परिणति को अब तू धारे ॥ प्रज्ञामयी है आतम, गुण की खानि आतम, श्रद्धा धारे... आये....
अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
भजन
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अपरिणामी को देखो, परिणाम नहीं तेरे । कृत कृत्य हुआ हूँ मैं, आनन्द वशा मेरे ॥
१. निर्विकल्प ध्यान में जब उपयोग मेरा जुड़ता । अन्तर्मुख होने से, निज पद को प्राप्त करता ॥ २. चैतन्य मूर्ति मैं अमृत का प्याला हूँ । सुखधाम मेरा मुझमें अनंत शक्ति वाला हूँ ॥ ३. पुरूषार्थ करूं मैं अब, श्रद्धा से प्रीत मेरी | आतम से प्रीति बढ़े, छूटे इस जग की बेड़ी ॥
४.
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आतम है ध्रुव अभेद, कूटस्थ अपरिणामी । सम्यक्त्व से शोभित है, है शिवपुर का स्वामी ॥
५. अतीन्द्रिय आनन्द में बहे स्वानुभूति धारा ।
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अचिन्त्य चिंतामणि का, होवे जय जय कारा ॥
अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
भजन = १००
तर्ज- दुनियां बनाने वाले का....
नर जन्म पाने वाले, मोह की कर दे विदाई | तूने निज सत्ता अपनाई ॥
१. मुश्किल से पाया तूने, नर जन्म पगले । दया और दान कीने, जन्म अगले ॥ तूने किया है अंतर बसेरा 1 जल्दी हो जाए अब ज्ञान सबेरा ॥ आतम को पाने वाले, इस जग से ले तू विदाई | तेरा भव चक्कर नस जाई....नर जन्म...
२. तेरे पड़ा है अज्ञान का परदा I मोह मिथ्या को छोड़ धर्म पे अड़ जा ॥ तू जो कहता है जग ये मेरा मेरा । यह जग है चिड़िया रैन बसेरा ॥ दानी कहाने वाले हृदय में समता धराई ॥ तूने कर ली है लाखों की कमाई.. नर जन्म...
३. स्वर्ग में घूमा तूने नर्क भी घूमा । पशुगति के दुःखों को चूमा || धर्म कर्म में कोई साथी नहीं है । विषयों को छोड़ो आतम तो सही है ॥ ज्ञायक कहाने वाले, ममता की कर दे विदाई | तूने सिद्ध परम पद पाई....नर जन्म...
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★ मुक्तक ★
आतम ही ज्ञान ध्यान का, सागर भरा पड़ा । आतम ही प्रेम मूर्तिमय, वात्सल्य का घड़ा ॥ आतम ही सदा आत्म में, विलसता रहा है। आतम सदा शुद्धात्मा में, बसता रहा है ॥ PM 192021
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