Book Title: Adhyatma Chandra Bhajanmala
Author(s): Chandrakanta Deriya
Publisher: Sonabai Jain Ganjbasauda

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Page 19
________________ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला भजन -33 ज्ञाता दृष्टा मेरी आतम सदा अमोलक है। स्वानुभूति से ये सदा भरी चकाचक है । ज्ञान वैराग्य की वर्षा हुई यकायक है। ध्यान आनन्द की बाड़ी हुई ये रोचक है ॥ सत्य धर्म का प्याला पियो मेरे भाई । यह शुद्धातम का दरिया परम ही सुखदाई ॥ मोह मिथ्यात के दरिया में मैं भटकता रहा। राग तृष्णा की आग में सदा झुलसता रहा ॥ जीवन ज्योति बनी है आज ज्ञान का दरिया । चौदह ग्रन्थ की टकसाल है चेतन हरिया ॥ धुव ज्ञान से मिथ्या का शमन करना है। जड़ पत्थर की प्रीति को हमें अब तजना है। व्यर्थ आडम्बरों से सावधान हमको रहना है। क्रिया कांडों में अब हमको नहीं फंसना है ॥ तीन लोकों में अविनाशी आतम को जान लिया। शील समता की सागर है इसे पहिचान लिया । मिला है आत्मा अनुपम ज्ञान का सागर । स्वानुभूति की समता से भरी इसकी गागर ॥ भजन -३४ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला तर्ज - छोड़ बाबुल का घर... हुये आतम मगन मिली सद्गुरू शरण, अब तो हम आ गये-हाँ ॥ १. मोह मिथ्या की भ्रांति सदा को चली, माया ममता से अब टूटेगी लड़ी-हाँ । शल्यों को छोड़कर, राग को तोड़कर, अब तो हम आ गये-हाँ ॥ २. अब तो आतम से नेह लगाते चलें, झूठे रिश्तों को अब ठुकराते चलें-हाँ। उनसे मुँह मोड़कर, ज्ञान उघाड़कर, अब तो हम आ गये- हाँ॥ ३. देखो सिद्धों की नगरी में हम आ गये, सत्ता एक शून्य विन्द में समा गये-हाँ । ज्ञान घन आत्मा हुई शुद्धात्मा, सिद्ध पद पा गये - हाँ ॥ ४. पूर्णानन्द बिहारी मेरा आत्मा, राग द्वेषादि भी अब हुये खातमा-हाँ । आनन्द अमृत भरा, वह लबालब भरा, स्वात्म पद पा गये-हाँ ॥ ५. नन्द आनन्द चिदानंद मयी आत्मा, शांत समता मयी भी मेरी आत्मा-हाँ । करे निज में बसर, धरे मुक्ति डगर, अब तो हम आ गये - हाँ॥ * मुक्तक * इस तरह तेरी आयु, क्षण-क्षण में बीत जाये। 5 इसका ही ज्ञान करके, निज आत्मा ही भाये ॥ Cनिज ज्ञान को ही देखे, निज ज्ञान को ही जाने।5 निज ज्ञान में मगन हो, अन्तर दृष्टि हो जाये। UUUUUUUUUUUUUUUU *मुक्तक वीतराग की नगरी में जायेंगे हम । ज्ञान वैभव से निज को लखायेंगे हम॥ शांत समता का गहरा समन्दर भरा। आत्म सागर में गोते लगायेंगे हम ॥

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