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अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
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भजन -३१ तर्ज - काय बोली आतम... जगा लइयो भइया जगा लइयो । सोई आतम को अब तो जगा लइयो । नरकों के दु:खों को कैसे कहूँ मैं। भूख अरू प्यास के दु:ख कैसे सहूँ मैं। अरे वैतरणी के दु:ख सहेनजइयो,सोई आतम.... तिर्यंच गति की सुन लो कहानी । भारी बोझा दिया दाना न पानी ॥ अरे सर्दी गर्मी से मर जइयो, सोई आतम... मनुष्य गति में जब मैं आया। विषय भोगों में मन भरमाया ॥ अरे मोह मिथ्या में न फंस जइयो, सोई आतम.... पुण्य उदय से सुर गति पाई। छह मास पहले गले माल मुरझाई॥ अरे रूदन मचा के निगौद जइयो,सोई आतम.... चारों गति की दुखद कहानी । अब तक न संभले होय हैरानी ॥ अरे आतम में अब तो समा जइयो, सोई आतम...
भजन -३२ सम्यक् दृष्टि को हर पल में, बहती आनन्द धारा है।
सम्यक दर्शन को पाने से. होता भव से पारा है। १. चिन्मय सत्ता का धनी आतम, रूप निहारे निज का हो। क्षमा शान्ति को हिय में पाले, अन्तर में उजियारा हो ।
सम्यक् दृष्टि को.... २. बहती रहती ज्ञान सुधा सी, धारा उसके जीवन में। निज परिणति को स्व में देखे, ज्ञान बगीचा अन्तर में |
सम्यक् दृष्टि को.... ३. ज्ञान स्वभावी आतम मेरी, ध्रुव अभेद है अविनाशी। अजर अमर चैतन्य अमूरति, अनंत गुणों की है वासी ।।
सम्यक् दृष्टि को.... ४. ज्ञान वैराग्य में लीन रहे, नित अनंत चतुष्टय धारी है। ऐसी मेरी प्यारी आतम, युग युग से बलिहारी है ॥
सम्यक् दृष्टि को.... ५. अगम अगोचर महिमा तेरी, निज स्वरूप को जाना है। ज्ञान ध्यान तप में दृढ़ होकर, निज सत्ता को पाना है ।
सम्यक् दृष्टि को.... ६. आया समय सुहाना तेरा, अब सम्यक् पुरूषार्थ करो। शुद्ध स्वरूप की करो साधना, शिवरमणी को शीघ्र वरो ।।
सम्यक् दृष्टि को....
*मुक्तक* निज आतम ने देखो भवियन, एक कमाल कर डाला।
आतम से आतम में बैठा, आतम को पा डाला॥ निर्झर सरित ज्ञान झरने से, रोज लगाये गोते। ज्ञान ज्योति की ज्ञान किरण से, आलोकित हम होते ॥
*मुक्तक शुद्धातम की पूजा करता, अपने पद का अनुभव करता। जिनवाणी के माध्यम से, वह ज्ञान स्वभाव में ही रहता ॥ चिद्रूप को ही देखा करता, उसमें ही वह मस्ती करता। शुद्ध दृष्टि होकर के वह, तो अनन्त चतुष्टय को धरता ।।