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अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
ॐ
भजन-३९
तर्ज-चढ़ गया ऊपर रे.... पर्युषण पर्व आया रे, अब अपने आतम को ध्याले रे॥ उत्तम क्षमा से हृदय को सजा ले, परम शांत दशा अपना ले॥ ये ही सुखदाई रे, अब अपने आतम को ध्याले रे, पर्दूषण पर्व... मार्दव धर्म की महिमा निराली, विषय कषायों से मन हो खाली॥ विनय भाव से रहियो रे, अब अपने आतम को ध्याले रे, पयूषण पर्व... आर्जव भाव सदा सुखकारी, छोड छल कपट मायाचारी॥ सरल स्वभावी रे, अब अपने आतम को ध्याले रे, पर्युषण पर्व... सत्य वचन को धारो प्राणी, मुख से बोलो श्री जिनवाणी॥ मोह राग को छोड़ो रे, अब अपने आतम को ध्याले रे, पयूषण पर्व... शौच धर्म की कीर्ति बखानी, इसमें संतोषित हर प्राणी ॥ अंतर में रहियो रे, अब अपने आतम को ध्याले रे, पर्दूषण पर्व... उत्तम संयम को पा लो भाई, भव-भव के हों पाप नसाई॥ रत्नत्रय को धरियो रे, अब अपने आतम को ध्याले रे, पर्युषण पर्व... उत्तम तप की सुन लो कहानी, क्षण में वरी शिव रमणी रानी॥ शुद्धातम में रहियो रे, अब अपने आतम को ध्याले रे, पर्युषण पर्व... उत्तम त्याग करो मेरे भाई, दान से जीवन सफल हो जाई । इससे निर्भय हो जइयो रे, अब अपने आतम को ध्याले रे, पयूषण पर्व... उत्तम आकिंचन मय रहना, शल्यों को तुम छोड़ो बहिना॥ परिग्रह चाह से डरियो रे, अब अपने आतम को ध्याले रे, पर्युषण पर्व... उत्तम ब्रम्हचर्य निधि पाना, अक्षय सुख का है ये खजाना॥ ज्ञान निधि को पा ले रे, अब अपने आतम को ध्याले रे, पर्युषण पर्व...
मुक्तक आत्म सुख शांति दाता है सदा मंगलकारी। स्वानुभूति की महकती सदा ये फुलवारी॥ ज्ञान दर्शन चरण से की अभी मैंने यारी। सत् चिदानन्द की लगी अनोखी ये क्यारी॥
भजन-४० तर्ज - कौन दिशा में लेके चला....
आतम वैभव की कहानी सुनो भैया। ये कहानी है आत्म वैभव की, धर्म धारो सदा, धारो सदा॥ १. आत्मज्ञान की निधि को पा ले, हो जाए भव पार हो। रत्नत्रय की शान्ति सुधा से, जीवन होगा सार हो । आत्मदेव ही परम देव है, अनन्त ज्ञान भण्डार हो । ज्ञान वैभव को सम्हालो, मेरे भैया... ये कहानी है... २. विषय कषाय में झुलस रहा है. यह संसार असार हो। अक्षय सुख का मिले खजाना, हो जाए भव पार हो । ब्रम्हचर्य बिन कैसे मिलता, ब्रह्म स्वरूपी ज्ञान हो । धर्म का ध्यान धरो मेरे भैया... ये कहानी है... ३. आतम ही तो परमातम है, सहजातम सुखधाम हो। शुद्धातम की करो साधना, अनंत गुणों का गोदाम है । ब्रम्हभाव में लीन रहो तुम पा जाओ, शिव धाम हो । ब्रम्ह स्वरूपी हो मेरे भैया... ये कहानी है...
भजन -४१ तर्ज - खुशी खुशी कर दो विदा... धर्म को धारो सदा, शिव रमणी तेरा वरण करेगी। १. छह द्रव्यों को तू जाने,नव पदार्थ श्रद्धा हिय ठाने ।
सात तत्वों की कर लो श्रद्धा, शिवरमणी तेरा... २. राग भाव से नाता तोड़े, समकित से तू प्रीति है जोड़े।
ज्ञान गुण को प्रगटा ले सदा, शिवरमणी तेरा... ३. जन्मे मरे बहुत दु:ख भोगे, चारों गति के दु:ख से रोवे।
अरे आतम को भजना सदा, शिवरमणी तेरा... ४. जिनवाणी माँ जगा रही है, मोह राग से हटा रही है।
निज सत्ता को पा लो सदा, शिवरमणी तेरा... ५. चन्द्र तू अपने आतम को ध्याले, ध्रुव स्वभाव को तू अपना ले।
सरल शांत ही रहना सदा, शिवरमणी तेरा...